Tuesday, November 18

10 साल पुराने अखलाक मॉब लिंचिंग केस में यूपी सरकार ने केस वापसी की अर्जी दायर की

ग्रेटर नोएडा, 17 नवम्बर। दादरी के बिसाहड़ा गांव में वर्ष 2015 के चर्चित अखलाक मॉब लिंचिंग केस को वापस लेने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रेटर नोएडा की जिला अदालत में औपचारिक अर्जी दाखिल की है। दस वर्षों से चल रहे इस बेहद संवेदनशील मामले पर अदालत 12 दिसंबर को सुनवाई करेगी।

सरकार की ओर से दायर प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि सामाजिक सौहार्द और आपसी मेलजोल बनाए रखने के दृष्टिकोण से केस को समाप्त करने की अनुमति दी जाए। वहीं अखलाक का परिवार और पीड़ित पक्ष इस कदम का कड़ा विरोध कर रहा है और उम्मीद जता रहा है कि अदालत मुकदमा जारी रखने का निर्देश देगी।

क्या है मामला?

28 सितंबर 2015 की रात गोमांस रखने की अफवाह फैलने के बाद बिसाहड़ा गांव में भीड़ ने अखलाक के घर पर हमला कर दिया था। भीड़ की पिटाई में अखलाक की मौत हो गई थी, जबकि उनका बेटा दानिश गंभीर रूप से घायल हुआ था। यह घटना पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव का कारण बनी और बिसाहड़ा गांव राष्ट्रीय चर्चा का केंद्र बन गया।

अखलाक की पत्नी इकरामन ने 10 नामजद और 5 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। पुलिस ने जांच के बाद 18 आरोपियों के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल किया। सभी आरोपी वर्तमान में जमानत पर हैं और ट्रायल जारी है।

सरकार केस क्यों वापस लेना चाहती है?

सरकारी अर्जी के मुताबिक—

  • गवाहों के बयानों में आरोपियों की संख्या को लेकर विसंगतियां पाई गई हैं।
  • वादी और आरोपी सभी एक ही गांव के निवासी हैं।
  • केस की संवेदनशीलता को देखते हुए सामाजिक सद्भाव की दृष्टि से मुकदमा वापस लेने का निर्णय लिया गया है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत केस वापसी के लिए राज्यपाल की स्वीकृति भी प्राप्त है।

सरकार का तर्क है कि घटना स्थल से कोई आग्नेयास्त्र या धारदार हथियार बरामद नहीं हुआ, जबकि भीड़ द्वारा लाठी-डंडे और ईंट-पत्थरों के प्रयोग का उल्लेख जांच में है।

पीड़ित पक्ष का सवाल—हत्या के मामले में केस वापसी क्यों?

अखलाक पक्ष के वकील का कहना है कि यह मामला हत्या और मॉब लिंचिंग से जुड़ा है, जिसमें—

  • प्रत्यक्षदर्शी गवाह मौजूद हैं,
  • पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है,
  • गवाहों के बयान अदालत में दर्ज हो चुके हैं।

ऐसे में “सामाजिक सद्भाव” के नाम पर केस वापसी का औचित्य समझ से परे है।

फोरेंसिक रिपोर्ट को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। प्रारंभिक जांच में बरामद मांस का रंग और फैट की संरचना मटन जैसी थी, जबकि बाद में जारी रिपोर्ट में वही मांस गौवंशीय बताया गया। यह विरोधाभास भी चर्चा में है।

अदालत करेगी अंतिम निर्णय

सरकार की अर्जी पर फास्ट ट्रैक कोर्ट-1 में सुनवाई होगी। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार हत्या जैसे गंभीर अपराध में केस वापसी बेहद असाधारण परिस्थिति हो सकती है, और अंतिम निर्णय न्यायालय का होगा।

पीड़ित पक्ष का कहना है कि उन्हें न्यायालय पर पूरा भरोसा है और उम्मीद है कि ट्रायल जारी रहेगा।

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