
पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन में नौकरशाही का इस्तेमाल सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए एक लंबा और रणनीतिक तरीका बन गया है। मुख्यमंत्री 2010 से ही विश्वासपात्र नौकरशाहों के जरिए मंत्रियों की कार्यप्रणाली पर निगाह रखते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तुरंत हस्तक्षेप करते हैं।
मंत्रियों पर प्रशासनिक नजर
गिरिराज सिंह: 2010 में पशुपालन मंत्री बनने के बाद विभागीय सचिव से अपेक्षित सहयोग न मिलने पर सीएम ने हस्तक्षेप किया। गिरिराज सिंह ने मीडिया में नाराजगी जताई, लेकिन सीएम ने विभागीय तंत्र के जरिए स्थिति नियंत्रित की।
राम नारायण मंडल: राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रहते हुए सचिव से मतभेद होने पर सीएम ने तुरंत हस्तक्षेप कर स्थानांतरण और अन्य फाइलें रद्द कर दीं।
रामसूरत राय: जुलाई 2022 में बड़े स्तर के तबादलों को लेकर गड़बड़ी सामने आने पर सीएम ने आदेश को निरस्त किया।
वर्तमान मंत्रियों की नजर में प्रशासन
वर्तमान उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा भी मुख्यमंत्री नीतीश के प्रशासनिक शिकंजे में शामिल हैं। हाल ही में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की जनकल्याण कार्यशाला में उनके कार्यक्रम में प्रधान सचिव सीके अनिल की मौजूदगी ने मंत्री को सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया देने पर मजबूर किया।
सीएम का रणनीतिक फॉर्मूला
विशेषज्ञ मानते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह ताकत उनका विश्वासपात्र नौकरशाहों का नेटवर्क है। यह तंत्र मंत्रियों की गतिविधियों पर नजर रखता है, गड़बड़ी की सूचना सीएम तक पहुंचाता है और जरूरत पड़ने पर तुरंत कार्रवाई करता है। इसी रणनीति के दम पर नीतीश कुमार सत्ता पर लंबे समय से स्थिर पकड़ बनाए हुए हैं।
विशेष: मुख्यमंत्री की यह नीति केवल सत्ता बनाए रखने का तरीका नहीं है, बल्कि प्रशासनिक अनुशासन और प्रभावी निगरानी का भी एक उदाहरण मानी जाती है।