
📍 16 अप्रैल | एस.डी. न्यूज़ एजेंसी, इंदौर
इंदौर शहर में निवासरत मैथिल समाज ने मंगलवार, 15 अप्रैल को पारंपरिक श्रद्धा और आस्था के साथ मैथिल नववर्ष ‘जुड़ शीतल’ (जिसे बसिया पावैन भी कहा जाता है) को पूरी गरिमा और उल्लास के साथ मनाया।
प्रातः काल घर-घर में पूजा अर्चना के साथ इस पर्व की शुरुआत हुई। घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाओं ने परिवार के छोटे सदस्यों को पूजा घर में रखे बासी जल से माथे को सिक्त करते हुए “जुड़ायल रहु” यानी सदा शीतल, शांत और समृद्ध बने रहने का आशीर्वाद दिया। यह पवित्र जल पेड़-पौधों, तुलसी चौरा, घर की चौखटों और आंगनों में भी छिड़का गया, ताकि वातावरण में शुद्धता और शीतलता बनी रहे।
इस दिन मैथिल परिवारों में चूल्हा नहीं जलाया गया। पारंपरिक नियमों का पालन करते हुए परिवारजनों ने बासी भात, बड़ी, दही और कैरी की चटनी का सेवन किया। यह न केवल स्वास्थ्यप्रद आहार है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा बचत का भी प्रतीक है। शाम को घरों में मिथिला का प्रसिद्ध पकवान दैलपूरी, खीर और अन्य पारंपरिक व्यंजन बनाए गए। समाज के लोगों ने एक-दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं दीं।
वरिष्ठ समाजसेवी के. के. झा ने बताया कि ‘जुड़ शीतल’ केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह संस्कार, पर्यावरण चेतना और पारिवारिक सौहार्द की अनुपम परंपरा है। इस दिन तुलसी चौरा, शिवालयों और पूर्वजों के स्मृति स्थल, जिन्हें ‘साड़ा’ कहा जाता है, पर कलश में जल भरकर लटकाया जाता है। यह परंपरा न केवल पितरों की प्यास बुझाने की भावना से जुड़ी है, बल्कि गर्मी में शीतलता बनाए रखने की सांकेतिक प्रेरणा भी देती है।
संध्या काल में सभी परिवारजन वृक्षों की जड़ों में जल अर्पित करते हैं, जो यह प्रतीक है कि वृक्ष केवल जीव नहीं, बल्कि परिवार के अभिन्न सदस्य हैं, जो हमें छांव, फल और जीवनदायिनी ऊर्जा प्रदान करते हैं। झा ने कहा, “जुड़ शीतल का भाव यही है कि पुत्र से पितर तक, घर से प्रकृति तक और शरीर से आत्मा तक—हर स्तर पर शीतलता, समरसता और संतुलन बना रहे।”
उन्होंने यह भी कहा कि जुड़ शीतल का यह पर्व आज के युग में हमें प्रकृति से जुड़ने, परिवार के मूल्यों को संजोने और पूर्वजों की परंपराओं को जीवित रखने की प्रेरणा देता है।
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