Thursday, December 25

मोदी की लाहौर यात्रा के 10 साल शांति की उम्मीद से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ तक: कैसे बदली भारत–पाकिस्तान की कहानी

 

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आज से ठीक दस साल पहले, 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक लाहौर पहुंचकर न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया को चौंका दिया था। यह वही दिन था, जब मोदी ने सुबह का नाश्ता काबुल में किया, दोपहर का भोजन लाहौर में और रात का डिनर दिल्ली में। महज दो घंटे की यह यात्रा भारत–पाकिस्तान संबंधों के इतिहास में शांति की एक नई उम्मीद के रूप में दर्ज हुई थी।

 

तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे। मोदी का लाहौर पहुंचना इतना अप्रत्याशित था कि दोनों देशों के राजनयिक तंत्र तक को इसकी भनक नहीं थी। नवाज शरीफ के पारिवारिक समारोह में प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी, गले मिलना और गर्मजोशी भरी बातचीत ने यह संकेत दिया था कि शायद उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी दुश्मनी अब संवाद के रास्ते पर आगे बढ़ेगी।

 

उम्मीदें टूटीं, भरोसा चकनाचूर

 

लेकिन यह उम्मीद ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकी। लाहौर यात्रा के कुछ ही महीनों बाद 2016 में पठानकोट आतंकी हमला हुआ। इसके बाद उरी हमला और फिर भारत की ओर से सर्जिकल स्ट्राइक—इन घटनाओं ने यह साफ कर दिया कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का धैर्य समाप्त हो चुका है।

 

2019 में पुलवामा आतंकी हमला हुआ, जिसके जवाब में भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक कर दी। यह पहला मौका था जब दोनों परमाणु संपन्न देश खुले तौर पर हवाई हमलों के जरिए आमने-सामने आए। लाहौर में शुरू हुई बातचीत अब सैन्य कार्रवाई और प्रतिशोध की राजनीति में बदल चुकी थी।

 

‘बातचीत और आतंकवाद साथ नहीं चल सकते’

 

इन घटनाओं के बाद भारत की नीति बिल्कुल स्पष्ट हो गई—आतंकवाद और संवाद एक साथ नहीं चल सकते। पाकिस्तान को यह संदेश साफ तौर पर दे दिया गया कि अगर भारत बातचीत के लिए लाहौर तक पहुंच सकता है, तो आतंकी हमले की कीमत चुकाने के लिए जवाबी कार्रवाई भी कर सकता है।

 

अगस्त 2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद रिश्ते और बिगड़ गए। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत से राजनयिक और व्यापारिक संबंध न्यूनतम स्तर पर ला दिए। नियंत्रण रेखा (LoC) पर गोलीबारी आम बात हो गई।

 

हालांकि 2021 में तत्कालीन पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल में संघर्षविराम समझौता हुआ, लेकिन यह भी ज्यादा टिकाऊ साबित नहीं हुआ।

 

पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर

 

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमला भारत–पाक संबंधों में निर्णायक मोड़ साबित हुआ। आतंकियों ने मजहब पूछकर पर्यटकों की हत्या की, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। इसके जवाब में भारत ने 7–8 मई की रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ लॉन्च किया।

 

इस ऑपरेशन के तहत भारत ने पीओके और पाकिस्तान के भीतर स्थित 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए। इसके बाद चार दिनों तक चले संघर्ष में भारत ने पाकिस्तान के 11 एयरबेस को ब्रह्मोस मिसाइलों से निशाना बनाया। पाकिस्तानी अवाक्स समेत कई विमान गिराए गए और सैकड़ों सैनिक हताहत हुए—जिसे शहबाज शरीफ सरकार ने आधिकारिक दस्तावेजों में स्वीकार किया।

 

लाहौर से जंग के कगार तक

 

इस तरह 2015 में लाहौर से शुरू हुई बातचीत 2025 में परमाणु युद्ध जैसे हालात तक पहुंच गई। मोदी की लाहौर यात्रा आज एक ऐसे खोए हुए अवसर की तरह देखी जाती है, जहां से इतिहास की दिशा बदली जा सकती थी—लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

 

निष्कर्ष

 

मोदी की लाहौर यात्रा के दस साल यह बताते हैं कि भारत–पाकिस्तान संबंधों में शांति की राह तभी संभव है, जब आतंकवाद पर पूर्ण विराम लगे। आज की हकीकत यह है कि दोनों देश किसी भी समय टकराव की स्थिति में पहुंच सकते हैं। लाहौर की गर्मजोशी अब केवल इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई है—एक ऐसी याद, जिसकी अहमियत आज शायद दोनों देशों के आम लोगों के लिए भी धुंधली पड़ चुकी है।

 

 

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