
इस्लामाबाद।
पाकिस्तान में सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) बनाए जाने के बाद सियासी विवाद अब धार्मिक रंग लेने लगा है। इस पद को बनाने वाले 27वें संवैधानिक संशोधन पर अब सीधे इस्लामी सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगा है। जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम–फजल (JUI-F) से जुड़े वरिष्ठ इस्लामी विद्वान और मुफ्ती तकी उस्मानी ने असीम मुनीर को दी गई आजीवन कानूनी छूट को “इस्लामी दृष्टि से हराम” करार दिया है।
मुफ्ती तकी उस्मानी के इस बयान ने न सिर्फ पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार को भी असहज स्थिति में ला खड़ा किया है।
‘जवाबदेही से ऊपर कोई नहीं’
CNN-News18 की रिपोर्ट के मुताबिक, मुफ्ती तकी उस्मानी ने कहा कि इस्लाम किसी भी व्यक्ति को जवाबदेही से ऊपर रखने की अनुमति नहीं देता। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि चाहे कोई आम नागरिक हो, शासक हो, जनरल हो या यहां तक कि खलीफा ही क्यों न हो—किसी को भी पूर्ण और आजीवन छूट देना इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है।
उनका कहना है कि किसी एक पद या व्यक्ति को ऐसी संवैधानिक सुरक्षा देना, जो उसे हर तरह की कानूनी कार्रवाई से मुक्त कर दे, “गैर-इस्लामी” है और इसे धार्मिक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
JUI-F में बढ़ता असंतोष
27वें संवैधानिक संशोधन के तहत असीम मुनीर को CDF बनाए जाने के साथ ही उन्हें पद पर रहते हुए किए गए फैसलों के लिए आपराधिक और दीवानी मुकदमों से आजीवन सुरक्षा मिल गई है। यही प्रावधान JUI-F के असंतोष की जड़ बन गया है।
गौरतलब है कि JUI-F, वही पार्टी है जो 2022 में इमरान खान सरकार को हटाने वाले PDM गठबंधन का हिस्सा रही थी। अब वही पार्टी इस संशोधन को कुरान और इस्लामी न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बता रही है।
शहबाज सरकार पर ‘कठपुतली’ होने का आरोप
JUI-F प्रमुख मौलाना फजलुर्रहमान पहले ही यह कह चुके हैं कि पाकिस्तान में वास्तविक सत्ता सरकार के नहीं, बल्कि सेना के हाथों में है। पार्टी का आरोप है कि शहबाज शरीफ की PML-N और बिलावल भुट्टो की PPP सत्ता का राजनीतिक लाभ उठा रही हैं, जबकि सेना को असाधारण शक्तियां दी जा रही हैं।
मुफ्ती तकी उस्मानी के बयान को इसी नाराजगी की सार्वजनिक अभिव्यक्ति माना जा रहा है, जिसने शहबाज शरीफ सरकार और असीम मुनीर—दोनों के लिए संकट खड़ा कर दिया है।
सरकार से दूरी बना सकते हैं फजलुर्रहमान
रिपोर्ट्स के मुताबिक, देवबंदी विचारधारा से जुड़े कई मौलवियों ने मौलाना फजलुर्रहमान पर दबाव बढ़ा दिया है कि वे सरकार से दूरी बनाएं। इन धार्मिक समूहों का मानना है कि मौजूदा सत्ता गठबंधन को व्यापक रूप से “गैर-इस्लामी” माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर JUI-F ने सरकार से समर्थन वापस लिया, तो पाकिस्तान की पहले से अस्थिर राजनीतिक व्यवस्था और अधिक कमजोर हो सकती है।
निष्कर्ष
असीम मुनीर का CDF बनना अब सिर्फ संवैधानिक या सैन्य मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह धार्मिक वैधता बनाम सैन्य शक्ति की बहस में बदलता दिख रहा है। मुफ्ती तकी उस्मानी के बयान ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान में सेना की बढ़ती भूमिका को लेकर विरोध अब मस्जिदों और मदरसों तक पहुंच चुका है—और इसका सीधा असर शहबाज शरीफ सरकार की स्थिरता पर पड़ सकता है।