
भोपाल।
“मेरा बेटा बच तो गया, लेकिन वह अब दुनिया नहीं देख सकता…” यह कहते हुए छिंदवाड़ा के परासिया निवासी टिक्कू यादववंशी की आंखें भर आती हैं। जहरीला कफ सिरप पीने के बाद 116 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच जूझता रहा उनका पांच साल का बेटा आखिरकार घर लौट आया है, लेकिन हमेशा के लिए अपनी आंखों की रोशनी गंवा चुका है।
यह वही कोल्ड्रिफ कफ सिरप त्रासदी है, जिसने छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में 26 मासूम बच्चों की जान ले ली। कुछ ही बच्चे इस त्रासदी से बच पाए—और उनमें से एक है टिक्कू का बेटा, जिसकी जिंदगी अब स्थायी विकलांगता के साथ आगे बढ़ेगी।
चल नहीं पाता, देख नहीं सकता
पिता के मुताबिक बच्चा न तो ठीक से चल पा रहा है और न ही देख सकता है। ऐसे में वह उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ सकते। टिक्कू का सवाल है—
“इस हालत में मैं काम पर कैसे जाऊं? परिवार कैसे चलाऊं?”
चार महीने अस्पताल, जिंदगीभर का दर्द
बच्चे की तबीयत 24 अगस्त को बिगड़नी शुरू हुई, जब उसे परासिया के एक निजी डॉक्टर को दिखाया गया। हालत लगातार बिगड़ती गई।
1 सितंबर को उसे नागपुर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया और 11 सितंबर को AIIMS नागपुर रेफर किया गया। वहां तीन महीने से अधिक समय तक इलाज चला। आखिरकार सोमवार रात उसे डिस्चार्ज किया गया।
जिंदगी बचाने की कीमत
टिक्कू पहले एक निजी फाइनेंस कंपनी में काम करते थे। पिछले चार महीनों से उन्हें वेतन नहीं मिला।
- हाउसिंग लोन की EMI नहीं चुका पाए
बच्चे के इलाज के लिए मवेशी बेचने पड़े
नागपुर में इलाज और रहने के खर्च के लिए पत्नी के गहने गिरवी रखने पड़े
“हम चार लोग वहां रह रहे थे—खाना, कमरा, इलाज, हर चीज का खर्च खुद उठा रहे थे, जबकि हमारा बच्चा जिंदगी के लिए जूझ रहा था,” टिक्कू बताते हैं।
इलाज की अनिश्चित उम्मीद
राज्य सरकार ने आर्थिक मदद का भरोसा जरूर दिया है, लेकिन परिवार का कहना है कि यह सहायता नाकाफी है। डॉक्टर भी यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि बच्चे की आंखों की रोशनी कभी लौटेगी या नहीं।
सरकार से पिता का सवाल
टिक्कू सरकार से केवल एक सवाल पूछते हैं—
“क्या सरकार मेरे बेटे के भविष्य के इलाज की जिम्मेदारी लेगी? मैंने सुना है कि चेन्नई में आंखों के इलाज की बेहतर सुविधाएं हैं। मेरा बच्चा निर्दोष है। उसे कम से कम एक मौका तो मिलना चाहिए।”
जांच और कार्रवाई, पर पीड़ा जस की तस
इस कांड में डॉक्टर दंपती, सिरप निर्माता कंपनी और अन्य लोगों की गिरफ्तारी, निलंबन और SIT जांच हो चुकी है। लेकिन जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया या अपूरणीय क्षति झेली, उनके लिए जवाबदेही से ज्यादा जरूरी राहत और पुनर्वास है।
मासूम मौत के मुंह से तो निकल आया, लेकिन अब उसका और उसके परिवार का संघर्ष शायद जिंदगीभर चलेगा।