Wednesday, December 24

AK-47 वाला अफसर, अपराधियों का खौफ ‘द डेयरिंग कॉप’ कुंदन कृष्णन बने डीजी, जानिए वर्दी के पीछे की कहानी

 

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पटना। बिहार में अपराध की दुनिया अगर किसी एक नाम से आज भी कांपती है, तो वह नाम है— कुंदन कृष्णन। खाकी वर्दी में ऐसा रौब, ऐसा खौफ कि खूंखार अपराधी भी सामने आने से पहले सौ बार सोचते हैं। हाथ में AK-47 और आंखों में कानून का डर— यही पहचान रही है उस अफसर की, जिसे अब बिहार सरकार ने प्रमोशन देकर डीजी (डायरेक्टर जनरल) के पद पर नियुक्त किया है। यह पद उन्हें यूं ही नहीं मिला, इसके पीछे है दशकों की सख्त, बेखौफ और निर्णायक पुलिसिंग।

 

नालंदा से आईपीएस तक का सफर

 

नाम से भले ही दक्षिण भारतीय लगें, लेकिन कुंदन कृष्णन बिहार के नालंदा जिले के रहने वाले हैं। 8 मार्च 1969 को जन्मे कुंदन कृष्णन ने 1993 में यूपीएससी परीक्षा पास कर आईपीएस बनने का गौरव हासिल किया। वर्ष 1994 में उन्हें बिहार कैडर मिला। इसके बाद उन्होंने अपराध के खिलाफ ऐसी मुहिम छेड़ी कि कई बड़े अपराधियों की नींद उड़ गई।

 

जब AK-47 लेकर जेल में घुसे थे कुंदन कृष्णन

 

साल 2002। लालू-राबड़ी शासन का दौर। छपरा जेल में करीब 1200 कैदियों ने दंगा कर जेल पर कब्जा कर लिया। हालात ऐसे कि कोई भी अफसर जेल में घुसने को तैयार नहीं था। तभी सामने आए कुंदन कृष्णन— तनी हुई भौंहें, हाथ में AK-47 और सीधा जेल के भीतर एंट्री।

हालात काबू से बाहर थे। पुलिस पर हमला कर रहे पांच कैदी एनकाउंटर में ढेर हो गए। इस मुठभेड़ में कुंदन कृष्णन का हाथ फ्रैक्चर हुआ, लेकिन हथियार नहीं छूटा। नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों कैदियों ने एक अकेले अफसर के सामने सरेंडर कर दिया। यह घटना आज भी बिहार पुलिस के इतिहास में दर्ज है।

 

बाहुबली आनंद मोहन की गिरफ्तारी

 

साल 2006, कुंदन कृष्णन पटना के एसपी सिटी थे। बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन को सहरसा जेल से देहरादून पेशी के लिए ले जाया गया था, लेकिन वह लौटने के बजाय पटना के एक होटल में ठहर गए। सूचना मिलते ही कुंदन कृष्णन अपनी टीम के साथ होटल पहुंच गए। समर्थकों से भिड़ंत हुई, हालात तनावपूर्ण हो गए, लेकिन अंततः कुंदन कृष्णन ने आनंद मोहन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

 

राष्ट्रपति शासन में दिखी वर्दी की असली ताकत

 

2005 में बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा। कुंदन कृष्णन उस समय पटना के एसपी थे। उनकी सख्त कार्रवाई के चलते कई नामी अपराधी या तो अंडरग्राउंड हो गए या फिर बिहार छोड़कर फरार हो गए। कहा जाता है कि एनकाउंटर के डर से अपराधियों ने खुद प्रदेश छोड़ दिया।

 

STF ऑपरेशन में भी दिखाया दम

 

2015 में दरभंगा के बेनीपुर में दो इंजीनियरों की हत्या के मामले में मोस्ट वांटेड अपराधी मुकेश पाठक नेपाल और गुजरात में छिपता फिर रहा था। कुंदन कृष्णन की रणनीति के आगे वह ज्यादा दिन नहीं बच सका और एसटीएफ के हत्थे चढ़ गया। (हालांकि बाद में 2024 में हाईकोर्ट से उसे राहत मिली।)

 

कोलकाता रेप केस में भी निभाई अहम भूमिका

 

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप केस के दौरान कुंदन कृष्णन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर CISF में एडीजी थे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्होंने कॉलेज की सुरक्षा व्यवस्था की कमान संभाली और हालात को नियंत्रित किया।

 

अब डीजी की कुर्सी, उम्मीदें और जिम्मेदारी

 

अब कुंदन कृष्णन अपने मूल कैडर बिहार में लौट आए हैं और डीजी बनाए जा चुके हैं। ऐसे में उनसे कानून-व्यवस्था को और मजबूत करने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। उनके अब तक के रिकॉर्ड को देखते हुए कहा जा सकता है कि बिहार पुलिस को एक बार फिर वही बेखौफ नेतृत्व मिलने जा रहा है, जिसने अपराधियों के दिलों में खौफ और आम लोगों के मन में भरोसा पैदा किया।

 

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