
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के माहौल में राज्य का मुसहर समुदाय अब भी सामाजिक और आर्थिक संघर्ष में है। बिहार की कुल आबादी का केवल 3.1 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद यह समुदाय आज भी सबसे पिछड़ा और वंचित दलित वर्ग माना जाता है।
🔹 मुसहरों की वर्तमान स्थिति
मुसहर बस्तियों में रहने की हालत दयनीय है। एक झोपड़ी में बच्चे पतली दाल और चावल खाते हैं, वहीं जलजमाव वाले खेत से सांप घर में घुस आते हैं। अधिकांश मुसहर झुग्गी-झोपड़ी या खपड़ा टिन शेड में रहते हैं, केवल 18% के पास एक कमरे वाले पक्के मकान हैं।
- सरकारी नौकरी: केवल 0.3% मुसहरों के पास।
- संपत्ति और सुविधा: 100 में से एक के पास कंप्यूटर/लैपटॉप, 99.6% के पास कोई गाड़ी नहीं।
- शिक्षा: साक्षरता दर मात्र 35%।
🔹 जीवन में बदलाव, लेकिन छुआछूत बरकरार
- चूहा खाने की प्रथा लगभग समाप्त, लेकिन राशन कार्ड के लिए रिश्वत देना पड़ता है।
- मुसहर अब मुख्य रूप से दैनिक मजदूर हैं और काम की तलाश में पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं।
- घरों में सुविधाओं का अभाव और शराब का कहर जारी है।
🔹 राजनीतिक प्रतिनिधित्व और चुनावी वादे
- 2014 में मुसहर समुदाय से जुड़े जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने। उनका नेतृत्व प्रतीकात्मक रहा और समुदाय की वास्तविक समस्याओं के समाधान में परिवर्तन नहीं आया।
- NDA और महागठबंधन दोनों मुसहर वोटों को साधने की कोशिश में हैं।
- महागठबंधन: प्रति परिवार एक सरकारी नौकरी, झुग्गियों में पक्के मकान।
- NDA: एक करोड़ नौकरियां, हर जिले में कौशल केंद्र, वित्तीय सहायता।
🔹 अनुसंधान और विशेषज्ञों की राय
TERI के शोधार्थी विवेक कुमार राय के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन आर्थिक और सामाजिक असमानता अभी भी व्यापक है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. तनवीर ऐजाज कहते हैं कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रतीकात्मक है और सख्त नीतियों में बदलाव नहीं हुआ।
🔹 मुसहरों की रोज़मर्रा की चुनौतियां
- दरभंगा के ढोई गांव में 300 लोग तिरपाल झोपड़ियों में रहते हैं, शौचालय और पानी की कमी है।
- समस्तीपुर में शराबबंदी का उल्लंघन आम है।
- सरकार की योजनाओं का लाभ सही ढंग से नहीं मिल रहा, कई लोग अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
निष्कर्ष
मुसहर समुदाय अब भी सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से हाशिए पर है। बिहार चुनाव में उनके वोटों की भूमिका राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन उनके जीवन में वास्तविक बदलाव लाने के लिए नीतिगत कार्रवाई और सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन आवश्यक है।
संक्षिप्त हेडलाइन विकल्प:
➡️ “बिहार चुनाव: मुसहर समुदाय की हाशिए वाली जिंदगी और राजनीतिक महत्व”
➡️ “3.1% आबादी, लेकिन लाखों की ज़रूरतें: मुसहरों की असल तस्वीर”
➡️ “मुसहर वोट और हाशिए की जिंदगी: बिहार चुनाव 2025 का जटिल सच”