
भोजपुरी सिनेमा की पहचान बनी फिल्म ‘नदिया के पार’ 43 साल बाद पटना में विशेष रूप से प्रदर्शित की जा रही है। यह फिल्म केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं थी, बल्कि बिहार के ग्रामीण समाज, संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को बड़े प्रभावशाली ढंग से परदे पर उतारने वाली सुपरहिट फिल्म थी।
मधुर गीत और यादगार किरदार
‘महक से तू कहीं बहक ना जाना… तंग करने का तोसे नाता है गुजरिया…’—इस गाने के बोल आज भी लोगों के मन में गूंजते हैं। फिल्म का टाइटल सॉन्ग ‘कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया’ हेमलता और जसपाल सिंह की मधुर आवाज में अब भी प्रेमियों के दिलों को छू जाता है। 10 अक्टूबर 1982 को रिलीज हुई इस फिल्म ने ग्रामीण संस्कृति, दहेज प्रथा और सामाजिक परंपराओं को बड़ी सहजता से पर्दे पर उकेरा। अभिनेता सचिन पिलगांवकर और अभिनेत्री साधना सिंह रातों-रात स्टार बन गए।
पटना में विशेष प्रदर्शन और परिचर्चा
बिहार सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग के सहयोग से बिहार राज्य फिल्म विकास और वित्त निगम लिमिटेड इस फिल्म का विशेष प्रदर्शन पटना के रीजेंट सिनेमा हॉल में करेगा। इसका उद्देश्य युवाओं को सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना और भोजपुरी समाज के मूल्यों से अवगत कराना है।
फिल्म प्रदर्शन के साथ एक परिचर्चा का आयोजन भी होगा, जिसमें ग्रामीण कहानी, सामाजिक संदर्भ और प्रेम के सरल चित्रण पर चर्चा की जाएगी। इस परिचर्चा में बिहार सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग के सचिव प्रणव कुमार मुख्य अतिथि होंगे।
भोजपुरी सिनेमा की धरोहर
‘नदिया के पार’ की कहानी केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ पर आधारित थी और गोविंद मूनिस ने इसका निर्देशन किया था। फिल्म ने प्रेम, सामाजिक सद्भाव और दहेज प्रथा पर कटाक्ष करते हुए एक नई मिसाल स्थापित की। इस फिल्म की सफलता ने बाद में ‘हम आपके हैं कौन’ जैसी फिल्मों की राह भी आसान की।
पटना के स्थानीय लोग और भोजपुरी प्रेमी इस विशेष प्रदर्शन के लिए उत्साहित हैं। आयोजन के माध्यम से फिल्म के माध्यम से बिहार की सांस्कृतिक विरासत और ग्रामीण जीवन की झलक युवाओं तक पहुंचाई जाएगी।
पटना में ‘नदिया के पार’ का यह पुनरावलोकन केवल फिल्म का प्रदर्शन नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति और भोजपुरी सिनेमा के इतिहास को जीवित रखने का एक प्रयास है।