
नई दिल्ली।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने हाल ही में अदालतों में लंबित मामलों और मुकदमेबाजी की बढ़ती लागत को लेकर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि न्याय का असली पैमाना कानूनी सिद्धांत नहीं, बल्कि आम नागरिकों का अनुभव है। ओडिशा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि न्याय व्यवस्था केवल कागजी नहीं, बल्कि सुलभ, समयबद्ध और मानवीय होनी चाहिए।
बूढ़े किसान की कहानी से मिली सीख
CJI सूर्यकांत ने अपने शुरुआती वकीली दिनों की एक घटना साझा की, जिसमें उन्होंने अदालत के बाहर एक बुज़ुर्ग किसान को दोपहर तक इंतजार करते देखा। जब उन्होंने किसान से पूछा कि आप अब तक क्यों इंतजार कर रहे हैं, तो किसान ने कहा, “मैं जल्दी घर चला गया तो सामने वाला समझेगा कि मैंने हार मान ली है।”
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह देरी केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि नागरिक की गरिमा का ह्रास है। लंबी अदालत प्रक्रिया और बढ़ती लागत आम लोगों के लिए न्याय तक पहुंच को कठिन बना रही है।
अदालतों में विश्वास बनाए रखना जरूरी
सूर्यकांत ने चेतावनी दी कि लंबी प्रक्रियाएं धीरे-धीरे अदालतों में जनता के विश्वास को खत्म कर देती हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा का अधिकार सुनिश्चित करना ही न्याय की असली कसौटी है। उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को सुलझाने से निचली अदालतों में भी न्याय प्रक्रिया सुचारू होती है और विश्वास बढ़ता है।
मध्यस्थता और वैकल्पिक समाधान की वकालत
CJI ने वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) और मध्यस्थता को मुकदमेबाजी कम करने और न्याय तेज करने के प्रभावी उपायों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि पारिवारिक, व्यावसायिक और यहां तक कि सीमा पार विवादों को भी मध्यस्थता के जरिए हल किया जा सकता है।
अनावश्यक मुकदमेबाजी पर रोक और डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल
सूर्यकांत ने कहा कि सरकारी विभाग अक्सर वास्तविक जरूरत के बजाय संस्थागत भय के कारण अपील दायर करते हैं। इसके लिए बेहतर प्रशिक्षण और जवाबदेही जरूरी है।
उन्होंने डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल को भी आवश्यक बताया। ई-फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई और ऑनलाइन केस ट्रैकिंग से विलंब कम किया जा सकता है, लेकिन उन्होंने डिजिटल धोखाधड़ी और डीपफेक जैसी चुनौतियों के प्रति सतर्क रहने की चेतावनी भी दी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत का संदेश स्पष्ट है: न्याय केवल कानून की किताबों में नहीं, बल्कि आम नागरिक के अनुभव में सुलभ और समयबद्ध होना चाहिए। लंबी देरी और महंगी मुकदमेबाजी से अदालतों पर भरोसा कमजोर होता है, और इसे रोकना न्याय व्यवस्था की प्राथमिकता होनी चाहिए।