Saturday, November 8

200 साल पुरानी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, कोर्ट ने कहा – हाई कोर्ट के आदेश में दखल की जरूरत नहीं

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के उज्जैन में 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद के विध्वंस से जुड़े विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने मस्जिद गिराए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए साफ कहा कि उसे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश में कोई त्रुटि नहीं दिखती।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की दो-न्यायाधीशीय पीठ ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यदि चाहें तो कानून के तहत उपलब्ध अन्य उपायों — जैसे मुआवजे की मांग — का सहारा ले सकते हैं।

⚖️ क्या है पूरा मामला

उज्जैन की 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद को जनवरी 2025 में प्रशासन ने गिरा दिया था। बताया गया कि यह कार्रवाई महाकालेश्वर मंदिर परिसर के विस्तार और पार्किंग निर्माण के लिए की गई।

इस विध्वंस के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि मस्जिद वक्फ संपत्ति है, जो वर्ष 1985 से विधिवत रूप से पंजीकृत थी और अब भी एक सक्रिय पूजा स्थल के रूप में कार्य कर रही थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह कार्रवाई पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 और वक्फ अधिनियम का उल्लंघन है।

💬 “हाई कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता पर गलत टिप्पणी की” — मुस्लिम पक्ष

मुस्लिम पक्ष की ओर से सीनियर वकील एम.आर. शमशाद ने दलील दी कि यह मामला संवेदनशील है और तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करता है।
उन्होंने कहा —

“मस्जिद को अवैध रूप से ढहाया गया है। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए गलती की कि धर्म का पालन करने का अधिकार किसी विशेष स्थान से जुड़ा नहीं होता।”

वकील ने यह भी बताया कि मस्जिद का विध्वंस बिना उचित प्रक्रिया और पुनर्वास की व्यवस्था के किया गया, जिससे नमाज अदा करने वाले स्थानीय मुसलमानों को गहरा आघात पहुंचा है।

⚖️ हाई कोर्ट ने क्या कहा था

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पहले ही मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया था।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मस्जिद जिस भूमि पर स्थित थी, उसे महाकाल लोक परियोजना के विस्तार के लिए विधिवत अधिग्रहित किया गया था।

अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा था —

“धर्म का पालन करने का अधिकार किसी विशेष पूजा स्थल से जुड़ा नहीं होता। आवश्यकता होने पर प्रशासन मुआवजे पर विचार कर सकता है।”

📜 13 नागरिकों ने लगाई थी सुप्रीम कोर्ट में याचिका

यह याचिका उज्जैन के 13 स्थानीय नागरिकों द्वारा दायर की गई थी, जो तकिया मस्जिद में नियमित रूप से नमाज अदा करते थे।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मस्जिद का विध्वंस संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई राहत नहीं दी और कहा कि याचिकाकर्ता अन्य कानूनी उपायों का सहारा ले सकते हैं।

🕌 फैसले के बाद क्या संकेत

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को मुस्लिम पक्ष के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी, जिससे यह मामला फिलहाल समाप्त हो गया है।
हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि याचिकाकर्ता चाहें तो मुआवजे या पुनर्वास के लिए अलग से कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
📌 निष्कर्ष:
200 साल पुरानी तकिया मस्जिद का विध्वंस न केवल धार्मिक संवेदनशीलता बल्कि विकास बनाम विरासत की बहस को भी एक बार फिर केंद्र में ले आया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि न्यायपालिका विकास परियोजनाओं में “धर्म” से ऊपर कानून की प्रक्रिया को प्राथमिकता दे रही है।

Leave a Reply