Tuesday, December 2

जयपुर की जयबाण तोप: एक गोला लाहौर तक पहुंचाने की शक्ति रखने वाला ‘विजय का अस्त्र’

सुधेंद्र प्रताप सिंह, जयपुर: भारत के इतिहास में कई भव्य हथियार रहे हैं, लेकिन जयपुर की जयबाण तोप किसी भी युद्धप्रेमी को चौंका सकती है। राजा जयसिंह द्वितीय ने 1720 में जयगढ़ किले के कारखाने में इस तोप का निर्माण करवाया था। इसकी मारक क्षमता 35 किलोमीटर से भी अधिक है। यदि इसे वाघा बॉर्डर पर तैनात कर चलाया जाए, तो इसका गोला आसानी से लाहौर तक पहुँच सकता है।

जयबाण का नाम और महत्व:
जयबाण का अर्थ है ‘विजय का अस्त्र’। यह तोप नाहरगढ़ किले में स्थित है और इसे मुगलों और संभावित शत्रुओं से सुरक्षा के लिए बनाया गया था। 20 फीट लंबी और 8 फीट 7.5 इंच व्यास वाली इस तोप का वजन 50 टन है। इसे चलाने के लिए लगभग 100 किलोग्राम बारूद की जरूरत पड़ती थी। इस विशाल तोप से 35 किलो ग्राम वजनी गोले को 35 किलोमीटर दूर तक फेंका जा सकता था, जो उस समय की सबसे लंबी फायरिंग रेंज मानी जाती थी।

इतिहास में सिर्फ एक बार चली जयबाण:
इतिहासकारों के अनुसार, जयबाण तोप का परीक्षण केवल एक बार किया गया था। जब इसे पहली बार दागा गया, तो इसका गोला जयपुर से 35 किलोमीटर दूर चाकसू में गिरा और वहां एक विशाल गड्ढा बन गया, जो आज भी मौजूद है। इसके बाद इसे कभी भी नहीं चलाया गया। इसके पीछे कारण था कि किले की बनावट और सुरक्षा के चलते बार-बार इसे चलाना संभव नहीं था।

इतिहास और इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना:
जयबाण तोप अपने समय की तकनीकी चमत्कार थी। न केवल इसका आकार और वजन बल्कि इसकी मारक क्षमता भी उस दौर के लिए अद्वितीय थी। यह आज भी भारतीय किलेबंदी और हथियारों की उन्नत तकनीक का प्रतीक मानी जाती है।

जयबाण तोप न केवल जयपुर की शौर्य परंपरा को दर्शाती है, बल्कि भारतीय युद्धकला और इंजीनियरिंग की महानता का जीवंत प्रमाण भी है।

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