
एक समय था जब लोग अपने संदेश पहुँचाने के लिए SMS या टेक्स्ट मैसेज का सहारा लेते थे। लेकिन अब लिखने और टाइप करने की आदत धीरे-धीरे छूट रही है। लोग वॉइस चैट और वॉइस नोट्स पर अधिक निर्भर होने लगे हैं। हर दिन दुनियाभर में 7 अरब से अधिक वॉइस मेसेज भेजे जा रहे हैं।
नेक्स्ट मूव स्ट्रैटजी कंसल्टिंग की स्टडी के अनुसार, AI चैटबॉट्स के आने के बाद खासकर युवा वर्ग में वॉइस नोट्स की आदत तेजी से बढ़ी है। आंकड़े बताते हैं कि 50% से ज्यादा युवा हर हफ्ते वॉइस नोट का इस्तेमाल करते हैं। स्मार्टफोन यूजर्स अब बोलकर काम करना ज्यादा आसान मान रहे हैं।
वॉइस AI बन रहा टेक्नॉलजी की अगली बड़ी लहर
वॉइस चैट के बढ़ते चलन ने वॉइस AI को टेक्नॉलजी की अगली बड़ी लहर बना दिया है। स्टडी के मुताबिक, वॉइस AI मार्केट, जिसमें स्मार्ट ईयरबड्स और वॉइस असिस्टेंट शामिल हैं, 2025 से 2030 के बीच 3 गुना से ज्यादा बढ़ सकता है, और इस दशक के अंत तक यह बाजार 34 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है।
वास्तव में इस साल वेंचर कैपिटल फंड्स ने वॉइस AI स्टार्टअप्स में करीब 6.6 अरब डॉलर निवेश किए हैं। 2023 में यह आंकड़ा सिर्फ 4 अरब डॉलर था।
बड़े टेक प्लेयर्स क्यों देख रहे मौका
कंपनियां तेजी से इस रेस में आगे बढ़ रही हैं।
- ElevenLabs सिंथेटिक वॉइस तकनीक में सबसे तेज उभरती कंपनी है, जिसका दावा है कि बाजार का 70–80% हिस्सा उसके पास है।
Apple ने अपने AirPods में लाइव ट्रांसलेशन फीचर बेहतर किया है, अब इंग्लिश, फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश, पुर्तगाली, चाइनीज, इटैलियन, जापानी और कोरियन भाषाओं का सपोर्ट है।
Google Gemini Assistant अब Pixel Buds में मौजूद है, जो फोन लॉक होने पर भी बिना हाथ लगाए बातचीत कर सकता है।
भारत में वॉइस चैट का बड़ा असर
सोचिए, ट्रैफिक में फंसे हैं और बस ईयरबड लगाकर बोलते हैं, ‘डिनर ऑर्डर कर दो’, बिना फोन छुए आपका ऑर्डर हो जाएगा। बुजुर्ग और दिव्यांग वॉइस AI से लाभ उठा सकते हैं।
भारत में 80 करोड़ से अधिक वट्सऐप यूजर्स हैं। अगर वॉइस AI हिंदी, तमिल, बंगाली जैसी भाषाओं में बेहतर काम करे, तो किसान अपनी फसल के दाम जान सकते हैं, छात्र पढ़ाई में मदद पाएंगे और ड्राइविंग करते समय भी जरूरी काम हाथ फ्री होकर कर सकते हैं।
प्राइवेसी की चिंता
एक्सपर्ट्स के मुताबिक सबसे बड़ा सवाल प्राइवेसी का है। अगर ईयरबड्स हमेशा सुनते रहेंगे, तो निजी बातचीत कितनी सुरक्षित रहेगी? कंपनियां इसके लिए एन्क्रिप्शन और लोकल प्रोसेसिंग पर काम कर रही हैं।
फिर भी टेक इंडस्ट्री का मानना है कि 2026 तक वॉइस चैटबॉट्स आम लोगों की रोजमर्रा का हिस्सा बन जाएंगे। स्क्रीन टाइम घटेगा और बातचीत बढ़ेगी।