
नई दिल्ली: भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक समूहों में से एक टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा स्टील नीदरलैंड्स में कानूनी विवाद में फंस गई है। नीदरलैंड्स की एक जिला अदालत में एक एनजीओ ने टाटा स्टील की दो सहायक कंपनियों के खिलाफ 1.6 अरब डॉलर (करीब 13,000 करोड़ रुपये) का मुकदमा दायर किया है।
एनजीओ का आरोप
मुकदमे में Stichting Fris Wind (SFW) नामक एनजीओ ने आरोप लगाया है कि टाटा स्टील के IJmuiden प्लांट से निकलने वाले जहरीले और हानिकारक पदार्थों के कारण आसपास रहने वाले लोगों की सेहत प्रभावित हुई है। साथ ही, उन्होंने दावा किया कि प्रदूषण के कारण वहां के घरों की कीमतें अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम हो गई हैं।
टाटा स्टील का जवाब
कंपनी ने इन आरोपों को पूरी तरह निराधार और काल्पनिक बताया है। टाटा स्टील का कहना है कि एनजीओ ने अपने दावों के समर्थन में कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किए। कंपनी ने यह भी कहा कि उनके पास मुकदमे का बचाव करने के मजबूत आधार हैं और वे कानूनी लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
ग्रीन स्टील और डीकार्बोनाइजेशन पहल
टाटा स्टील ने बताया कि उसने उत्सर्जन कम करने के लिए पर्याप्त निवेश किया है और ग्रीन स्टील प्लान के तहत सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रही है। इसी साल कंपनी ने डच सरकार के सहयोग से डीकार्बोनाइजेशन और हेल्थ प्रोजेक्ट के लिए 7 अरब डॉलर का प्रोजेक्ट भी शुरू किया है।
अंतरराष्ट्रीय ध्यान
टाटा स्टील के खिलाफ यह मुकदमा न केवल कंपनी के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर उसके पर्यावरणीय रिकॉर्ड पर भी सवाल खड़ा करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के पर्यावरणीय दावों और उनके पालन की निगरानी में नए मानक स्थापित कर सकता है।