
नई दिल्ली: देश में अगरबत्ती का बाजार लगभग 8,000 करोड़ रुपये का है। अब सरकार ने इसे सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल बनाने के लिए नया मानक जारी किया है। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने अगरबत्ती के लिए IS 19412:2025 गुणवत्ता मानक तैयार किया है, जिसमें कुछ हानिकारक रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग पर रोक लगाई गई है।
केमिकल्स पर पाबंदी
नए मानक के अनुसार एलेथ्रिन, पर्मेथ्रिन, साइपरमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन और फिप्रोनिल जैसे कीटनाशक रसायनों के साथ-साथ बेंजिल सायनाइड, एथिल एक्रिलेट और डाइफिनाइल एमीन जैसे कृत्रिम सुगंध मध्यवर्ती रसायनों का इस्तेमाल निषिद्ध है। इन रसायनों का प्रयोग मानव स्वास्थ्य, घर के अंदर वायु गुणवत्ता और पर्यावरण के लिए हानिकारक माना जाता है।
BIS मार्क से होगा भरोसा
अब नए मानक का पालन करने वाली अगरबत्तियों पर BIS मार्क लगा होगा, जिससे उपभोक्ता आसानी से सुरक्षित और प्रमाणित उत्पाद पहचान सकेंगे। नए नियम के तहत अगरबत्तियों को मशीन निर्मित, हाथ से बनी और पारंपरिक मसाला अगरबत्ती की श्रेणियों में बांटा गया है, और कच्चे माल, जलने की गुणवत्ता, सुगंध प्रदर्शन और रासायनिक मानकों को सुनिश्चित किया गया है।
उद्योग और निर्यात पर असर
भारत दुनिया में अगरबत्तियों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। सालाना लगभग 1,200 करोड़ रुपये मूल्य की अगरबत्तियां 150 से अधिक देशों में निर्यात की जाती हैं, जिनमें अमेरिका, मलेशिया, नाइजीरिया, ब्राजील और मेक्सिको शामिल हैं। मंत्रालय का कहना है कि नया मानक उपभोक्ता विश्वास बढ़ाएगा, टिकाऊ और नैतिक विनिर्माण को प्रोत्साहित करेगा और पारंपरिक कारीगरों को समर्थन देगा।
पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बड़ा कदम
विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम इनडोर एयर क्वॉलिटी, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद करेगा। अब घर-घर में पूजा और धार्मिक अनुष्ठान में अगरबत्तियों का इस्तेमाल सुरक्षित तरीके से किया जा सकेगा।