
जयपुर। अरावली पर्वतमाला के संरक्षण की दिशा में केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी असर वाला फैसला लिया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अरावली की पूरी श्रृंखला में नए खनन पट्टों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी कर दिया है। यह फैसला राजस्थान के लिए खास तौर पर बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि राज्य में अरावली का बड़ा हिस्सा फैला हुआ है और वर्षों से अवैध व अनियंत्रित खनन इसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ था।
अरावली में अब नहीं मिलेगी कोई नई माइनिंग लीज
पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि गुजरात से लेकर राजस्थान और दिल्ली तक फैली अरावली पर्वतमाला में अब किसी भी प्रकार की नई माइनिंग लीज जारी नहीं की जाएगी। मंत्रालय के आदेश के बाद अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण लागू हो जाएगा। इससे न केवल पर्वतमाला का संरक्षण होगा, बल्कि भू-क्षरण, वायु प्रदूषण और जल स्रोतों के सूखने जैसी गंभीर समस्याओं पर भी लगाम लगेगी।
राजस्थान को क्यों है सबसे ज्यादा फायदा
विशेषज्ञों के अनुसार, इस फैसले का सबसे बड़ा लाभ राजस्थान को मिलेगा। अरावली यहां मरुस्थलीकरण रोकने की प्राकृतिक दीवार मानी जाती है। यह पर्वतमाला भूजल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। खनन पर रोक से अरावली का प्राकृतिक संतुलन सुरक्षित रहेगा और आसपास के गांवों व शहरों को स्वच्छ हवा और पानी मिलेगा।
वैज्ञानिक आधार पर होगी निगरानी और योजना
मंत्रालय ने इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) को निर्देश दिए हैं कि वह अरावली के उन नए क्षेत्रों की पहचान करे, जहां खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। यह निर्णय पारिस्थितिक, भूवैज्ञानिक और लैंडस्केप स्तर के कारकों के आधार पर होगा।
इसके साथ ही पूरी अरावली श्रृंखला के लिए सस्टेनेबल माइनिंग प्रबंधन योजना तैयार की जाएगी, जिसमें पर्यावरणीय वहन क्षमता, संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान और क्षतिग्रस्त इलाकों की बहाली जैसे उपाय शामिल होंगे। यह योजना सार्वजनिक की जाएगी, ताकि सभी हितधारकों से सुझाव लिए जा सकें।
पर्यावरणविदों ने फैसले का किया स्वागत
राजस्थान के पर्यावरणविदों ने केंद्र सरकार के इस कदम को ऐतिहासिक बताया है। भीलवाड़ा निवासी पर्यावरणविद बाबूलाल जाजू ने कहा कि अरावली हमारी पौराणिक और प्राकृतिक विरासत है। विनाश की कीमत पर विकास स्वीकार्य नहीं हो सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि केवल आदेश जारी करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि धरातल पर सख्त पालन जरूरी है। कई बार प्रभावशाली लोगों द्वारा चोरी-छिपे अवैध खनन जारी रहता है, जिसे रोकने के लिए विशेष अभियान चलाना होगा।
अरावली बचाने का आंदोलन तेज
राजस्थान में अरावली संरक्षण को लेकर जन आंदोलन अब तेज होता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की नई परिभाषा सामने आने के बाद विरोध के स्वर और मुखर हुए हैं। बाड़मेर में नरपत सिंह राजपुरोहित ने राष्ट्रपति के नाम खून से ज्ञापन लिखकर अरावली बचाने की गुहार लगाई, जिसे कलेक्टर टीना डाबी को सौंपा गया। वहीं छात्र नेता निर्मल चौधरी ने माउंट आबू से 1000 किलोमीटर लंबी पदयात्रा शुरू की है, जिसे अब संत समाज का भी समर्थन मिल रहा है।
संदेश साफ—अरावली के बिना नहीं बचेगा भविष्य
केंद्र सरकार का यह फैसला न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मजबूत कदम है, बल्कि यह संकेत भी है कि विकास और प्रकृति के बीच संतुलन अब अनिवार्य है। यदि आदेशों का सख्ती से पालन हुआ, तो अरावली न सिर्फ बचेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवनदायिनी पर्वतमाला के रूप में अपनी भूमिका निभाती रहेगी।