
बस्तर: वह जिला, जिसे कभी माओवादियों का अभेद्य गढ़ माना जाता था, अब माओवादी हिंसा के इतिहास के सबसे बड़े मोड़ से गुजर रहा है। केंद्र सरकार की समग्र उन्मूलन नीति और गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति के चलते माओवादी संगठन का मुख्य नेतृत्व अब केवल दो व्यक्तियों तक सिमट गया है, और उनके साथ हथियारबंद सदस्य 130-150 के बीच ही सक्रिय हैं।
दो कमांडर ही बचे:
बस्तर के आईजीपी सुंदरराज पी. के अनुसार, संगठन का मुख्य नेतृत्व अब केवल बारसे देवा और पश्चिम बस्तर डिविजन सचिव पापाराव तक सीमित रह गया है। टेकुलगुड़ेम में 3 अप्रैल 2021 को हिड़मा के हिंसक दल द्वारा किए गए भीषण हमले में 21 जवानों के बलिदान ने माओवादी ढांचे के पतन की शुरुआत की। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बस्तर का दौरा कर माओवादी हिंसा के पूर्ण उन्मूलन का संकल्प लिया।
असंभव को किया संभव:
पहले लक्ष्य तिथि 30 मार्च 2023 तय की गई थी, जिसे बाद में 30 मार्च 2026 तक बढ़ाया गया। तब इसे लगभग असंभव माना जा रहा था, लेकिन अमित शाह की रणनीति और सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाई ने इसे संभव बना दिया। 2025 माओवादियों के लिए सबसे कठिन वर्ष साबित हुआ।
बसवराजू और हिड़मा की मौत:
माओवादी संगठन के प्रमुख बसवराजू की ढेर होने से संगठन भीतर तक हिल गया। पोलित ब्यूरो सदस्य भूपति और केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश समेत 261 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं। दक्षिण बस्तर के कुख्यात माओवादी और रणनीतिकार माड़वी हिड़मा की मौत ने पूरे माओवादी तंत्र का मनोबल चकनाचूर कर दिया।
10 दिन में 209 माओवादी सरेंडर:
हिड़मा के मारे जाने के दस दिनों में चार करोड़ रुपये से अधिक इनाम वाले 209 माओवादियों ने हथियार डाल दिए। इनमें दक्षिण-पश्चिम बस्तर डिवीजन सचिव मुचाकी एर्रा, दरभा डिविजन प्रभारी जी. पवनदम रेड्डी उर्फ श्याम दादा, और एमएमसी विशेष जोनल समिति के सक्रिय सदस्य अनंत नागपुरे जैसे बड़े नाम शामिल हैं।
अब माओवादियों के सामने केवल दो विकल्प बचे हैं – आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटना या बसवराजू और हिड़मा जैसे अंत का सामना करना।