Monday, November 24

26 नवंबर: मुस्लिम महिलाओं के लिए ऐतिहासिक फैसला?

तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी सुनवाई, महिलाओं की गरिमा पर सवाल
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ 26 नवंबर को उस विवादित इस्लामी प्रथा तलाक-ए-हसन की समीक्षा करेगी, जो महिलाओं की गरिमा से जुड़े संवैधानिक अधिकारों के लिए चुनौती बन चुकी है। तलाक-ए-हसन में मुस्लिम पति तीन महीने में तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही संकेत दिया है कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के तहत महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है या नहीं, इसकी जांच जरूरी है। जस्टिस सूर्यकांत ने पिछले सुनवाई में कहा था:
“कैसे एक सभ्य समाज में महिलाओं की गरिमा को प्रभावित करने वाली प्रथा को जारी रहने दिया जा सकता है?”

यह मामला पत्रकार बेनजीर हीना की याचिका पर चल रहा है, जिन्होंने तर्क दिया कि तलाक-ए-हसन महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है और इसे संविधान पीठ को सौंपने की जरूरत है।

मुस्लिम तलाक की प्रमुख प्रथाएं

सुप्रीम कोर्ट में पेश सीनियर एडवोकेट शिवाजी शुक्ला के अनुसार, मुस्लिम समाज में तलाक की कई प्रथाएं प्रचलित हैं:

  • तलाक-ए-सुन्नत: समझौते और सुलह के विकल्प के साथ, शिया और सुन्नी दोनों मानते हैं।
  • तलाक-ए-अहसान: केवल एक बार तलाक कहकर संबंध समाप्त।
  • तलाक-ए-इद्दत: तलाक के बाद तीन महीने का इंतजार, इस दौरान पति पत्नी के साथ संबंध नहीं बना सकता।
  • तलाक-ए-हसन: विवादास्पद प्रथा, तीन महीने में तीन बार तलाक, महिला के पीरियड्स के आधार पर।
  • तलाक-ए-बिद्दत (ट्रिपल तलाक): 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत में इसे बैन कर दिया।
  • तलाक-ए-इला: पति अस्थायी तौर पर यौन संबंध न रखने की शपथ लेता है।
  • तलाक-ए-जिहार: पत्नी की तुलना किसी औरत से करने पर विवाह संबंध रद्द।
  • तलाक-ए-खुला: पत्नी की पहल पर विवाह समाप्त।
  • तलाक-ए-मुबारत: आपसी सहमति से विवाह समाप्त करने की प्रक्रिया।

विशेषज्ञों का कहना है कि तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और गरिमा की रक्षा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

आगामी सुनवाई: 26 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट इस प्रथा पर अंतिम निर्णय के लिए विचार करेगी। इस फैसले से यह स्पष्ट होगा कि क्या तलाक-ए-हसन जैसी विवादास्पद प्रथा को अब संविधान के तहत चुनौती मिल सकती है या महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए इसे समाप्त किया जाएगा।

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