Monday, November 24

अल-फलाह यूनिवर्सिटी पर कार्रवाई की तलवार, अल्पसंख्यक दर्जा रद्द करने को लेकर एनसीएमईआई का नोटिस

फरीदाबाद। दिल्ली में 10 नवंबर को हुए विस्फोट मामले के बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी गंभीर जांच के दायरे में आ गई है। इसी बीच राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (एनसीएमईआई) ने विश्वविद्यालय को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि जारी जांच के मद्देनज़र उसका अल्पसंख्यक दर्जा क्यों न रद्द किया जाए। इस धमाके में 15 लोगों की मौत हुई थी और विश्वविद्यालय से जुड़े दो डॉक्टरों की भूमिका की जांच जारी है।

मान्यता और प्रशासन को लेकर पहले से सवाल

एनसीएमईआई की यह कार्रवाई तब हुई है जब विश्वविद्यालय पहले ही अपने वित्तीय प्रबंधन और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को लेकर विवादों में है। उल्लेखनीय है कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी को अब तक राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) से मान्यता प्राप्त नहीं है।
इसके संस्थापक जवाद अहमद सिद्दीकी की गिरफ्तारी के बाद मामले ने और तूल पकड़ लिया है।

छात्रों और अभिभावकों में बढ़ी चिंता

अल्पसंख्यक दर्जा रद्द होने की आशंका ने छात्रों और उनके अभिभावकों की चिंता बढ़ा दी है। कई विद्यार्थी सरकारी छात्रवृत्ति और अनुदान पर निर्भर हैं, जिसके प्रभावित होने की संभावना जताई जा रही है।
एक अभिभावक ने कहा—
“हम अपने बच्चों की डिग्री और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। विश्वविद्यालय और प्रशासन की ओर से स्पष्ट जवाब मिलना जरूरी है।”

विश्वविद्यालय प्रबंधन का दावा—“बंद नहीं होगा संस्थान”

विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि संस्थान बंद नहीं होगा और वह पूरी तरह अधिकारियों के साथ सहयोग कर रहा है।
हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि यदि एनसीएमईआई द्वारा मांगे गए दस्तावेज़—ट्रस्ट डीड, फंडिंग रिकॉर्ड और ऑडिट रिपोर्ट—समय पर उपलब्ध न कराए गए, तो सख्त कार्रवाई से इनकार नहीं किया जा सकता।

दस्तावेज़ जुटाने में प्रशासन के सामने चुनौती

शिक्षा विभाग ने फिलहाल नोटिस प्राप्त होने की पुष्टि नहीं की है, लेकिन अधिकारियों ने यह माना कि निजी विश्वविद्यालय के विस्तृत रिकॉर्ड जुटाना आसान नहीं होगा।
एक अधिकारी ने बताया—
“निजी संस्थान होने के कारण अधिकांश जानकारी सीधे हमारे पास उपलब्ध नहीं रहती। पहले भी डेटा मांगा गया था।”

4 दिसंबर को होगी सुनवाई

एनसीएमईआई की सुनवाई 4 दिसंबर को निर्धारित है, जिसमें विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और हरियाणा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को अपना पक्ष रखना होगा।
आयोग यह जांच करेगा कि—

  • क्या विश्वविद्यालय का प्रबंधन अब भी उसी अल्पसंख्यक समुदाय के नियंत्रण में है,
  • और क्या स्वामित्व या संचालन में कोई बदलाव हुआ है।

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