
नई दिल्ली: भारतीय बीमा नियामक IRDAI ने जनरल और हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों को चेतावनी दी है कि वे अपने विज्ञापनों में क्लेम सेटलमेंट के भ्रामक आंकड़े दिखाना बंद करें। साथ ही, सभी कंपनियों के लिए एक साझा स्टैंडर्ड फॉर्मूला तैयार किया जाए, ताकि क्लेम सेटलमेंट की वास्तविक स्थिति स्पष्ट हो।
क्या है समस्या:
- बीमा कंपनियां अपने विज्ञापनों में रिजेक्ट या पेंडिंग क्लेम को अक्सर शामिल नहीं करतीं।
- कंपनियों द्वारा दिखाए गए सेटलमेंट रेश्यो अक्सर उनकी ऑडिटेड रिपोर्ट के आंकड़ों से मेल नहीं खाते।
- इससे ग्राहकों को गलत भरोसा मिलता है कि उनके क्लेम लगभग हमेशा सेटल हो जाते हैं।
IRDAI के निर्देश:
- कंपनियों को अपने मौजूदा तरीकों की समीक्षा करनी होगी।
- मोटर, हेल्थ, पर्सनल एक्सीडेंट, फायर और मरीन बीमा समेत सभी प्रकार के क्लेम पर एक समान पैमाना लागू किया जाए।
- ग्राहकों को केवल सेटलमेंट रेश्यो पर भरोसा नहीं करना चाहिए; उन्हें क्लेम प्रोसेस की गति, रिजेक्ट होने के कारण और सेवा की क्वालिटी पर भी ध्यान देना चाहिए।
बीमा कंपनियों की प्रतिक्रिया:
- कई क्लेम इसलिए रिजेक्ट होते हैं क्योंकि दस्तावेज़ जमा करने की समय सीमा पूरी नहीं होती।
- कुछ क्लेम बीमा कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के कारण खारिज किए जाते हैं।
आंकड़े बताते हैं स्थिति:
- 2023-24 में कुल 83% क्लेम सेटल किए गए।
- 11% क्लेम रिजेक्ट और 6% पेंडिंग थे।
- हेल्थ बीमा क्लेम के लिए कुल 2.69 करोड़ रुपये और 83,493 करोड़ रुपये की रकम चुकाई गई।
विशेष जानकारी:
इंश्योरेंस सेक्टर में गड़बड़ियों के चलते हर साल लगभग 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। IRDAI ने कहा है कि इस भरोसे को बचाने के लिए बीमा कंपनियों, सरकार और रेगुलेटर को मिलकर काम करना होगा।