
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक डॉ. एम. श्रीनिवास ने बच्चों की जेंडर पहचान को लेकर एक अहम बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि जन्म के समय केवल बाहरी जननांगों को देखकर यह तय कर लेना कि बच्चा लड़का है या लड़की, वैज्ञानिक और चिकित्सकीय रूप से सही नहीं है।
डॉ. श्रीनिवास के अनुसार, कुछ नवजात शिशुओं में ऐसी स्थिति होती है, जहां केवल शारीरिक बनावट के आधार पर जेंडर की पहचान संभव नहीं होती। ऐसे मामलों में जल्दबाज़ी में लिया गया फैसला बच्चे के स्वास्थ्य और भविष्य के लिए गंभीर नुकसानदायक हो सकता है।
उन्होंने बताया कि इन विशेष मामलों में अल्ट्रासाउंड, ब्लड टेस्ट और क्रोमोसोम जांच जैसी चिकित्सकीय प्रक्रियाओं के बाद ही सही स्थिति स्पष्ट होती है। चिकित्सा विज्ञान में ऐसे बच्चों को ‘डिफरेंसेज ऑफ सेक्स डेवलपमेंट’ (DSD) की श्रेणी में रखा जाता है।
AIIMS निदेशक ने ज़ोर देकर कहा कि पहचान से ज़्यादा ज़रूरी समय पर सही जांच और उपचार है। समाज और परिवार को इस विषय में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और किसी भी तरह का दबाव या जल्द निर्णय लेने से बचना चाहिए।
यह बयान ऐसे समय आया है, जब सोशल मीडिया पर बच्चों की जेंडर पहचान को लेकर बहस तेज़ है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस विषय में जागरूकता बढ़ाने से कई बच्चों को अनावश्यक चिकित्सकीय और मानसिक नुकसान से बचाया जा सकता है।