
नई दिल्ली (अनुभूति विश्नोई): राजधानी दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण अब केवल मौसमी समस्या नहीं रह गया है, बल्कि यह एक स्थायी संकट का रूप ले चुका है। हालात इतने गंभीर हैं कि विशेषज्ञों का मानना है—अगर दिल्ली की हवा को सचमुच सांस लेने लायक बनाना है, तो इसके लिए 8 से 10 लाख करोड़ रुपये तक के भारी निवेश की जरूरत होगी। केवल सरकारी प्रयासों से यह संभव नहीं, इसके लिए निजी भागीदारी और दीर्घकालिक नीति अनिवार्य होगी।
दिल्ली सरकार भी यह स्वीकार कर चुकी है कि मौजूदा उपाय नाकाफी हैं और यह समस्या जल्द खत्म होने वाली नहीं है। प्रदूषण से निपटने के लिए अब टुकड़ों में नहीं, बल्कि समग्र और ठोस प्लान के तहत काम करना होगा।
इस व्यापक प्लान पर करना होगा काम
विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए निम्न बिंदुओं पर बड़े स्तर पर निवेश जरूरी है—
सड़कों का पुनर्निर्माण और पूर्ण पक्कीकरण, ताकि धूल प्रदूषण रोका जा सके
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मजबूत और व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर
सार्वजनिक परिवहन को पूरी तरह इलेक्ट्रिक या स्वच्छ ईंधन आधारित बनाना
केवल उच्च गुणवत्ता वाले ईंधन और सख्त उत्सर्जन मानकों वाले वाहनों की अनुमति
इन सभी के लिए सरकारी सब्सिडी और प्रोत्साहन योजनाएं
विशेषज्ञों का कहना है कि उद्योग जगत, खासकर छोटे और मध्यम उद्योगों, को भी बेहतर तकनीक अपनाने के लिए मार्गदर्शन और आर्थिक सहायता की आवश्यकता होगी। कई एजेंसियों की भागीदारी से रसद और क्रियान्वयन से जुड़ी चुनौतियां भी बढ़ जाती हैं।
प्रदूषण नियंत्रण के लिए बना था CAQM
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान अध्यादेश के जरिए बनाए गए इस आयोग को बाद में संसद की मंजूरी भी मिली।
सीएक्यूएम दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी कार्य योजनाओं के समन्वय में अहम भूमिका निभाता है।
अधिकार और संसाधनों की कमी से जूझता आयोग
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि सीएक्यूएम के पास न तो पर्याप्त अधिकार हैं और न ही प्रशिक्षित कर्मियों की संख्या। इसका कार्यान्वयन तंत्र भी कमजोर माना जा रहा है।
एक पूर्व पर्यावरण सचिव के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर पूरे साल प्रदूषण की चपेट में रहता है, लेकिन सर्दियों में हालात बिगड़ते ही तात्कालिक और मौसमी कदम उठाए जाते हैं—नई समितियों का गठन, अदालतों की फटकार और अस्थायी प्रतिबंध। गर्मी आते ही गंभीरता खत्म हो जाती है।
समस्या भी स्पष्ट, समाधान भी—बस इच्छाशक्ति की कमी
विशेषज्ञों का साफ कहना है कि प्रदूषण की समस्या और उसके समाधान दोनों स्पष्ट हैं। जरूरत है तो केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति, दीर्घकालिक सोच और बड़े निवेश की। जब तक दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को एक आपातकाल नहीं बल्कि स्थायी नीति का विषय नहीं बनाया जाएगा, तब तक साफ हवा महज एक सपना बनी रहेगी।