Saturday, December 27

सोमालीलैंड को मान्यता देकर इजरायल ने तुर्की की रणनीति को दी चुनौती, नेतन्याहू के दांव से एर्दोगन की मुश्किलें बढ़ीं

 

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मध्य-पूर्व और अफ्रीका की राजनीति में बड़ा भूचाल लाते हुए इजरायल ने सोमालीलैंड गणराज्य को स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में मान्यता दे दी है। इजरायल ऐसा करने वाला संयुक्त राष्ट्र का पहला सदस्य देश बन गया है। इस फैसले के बाद न सिर्फ सोमालिया, बल्कि तुर्की भी भड़क उठा है, जो इसे अपने क्षेत्रीय हितों और अफ्रीका नीति पर सीधा हमला मान रहा है।

 

इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शुक्रवार को सोमालीलैंड के राष्ट्रपति अब्दिरहमान मोहम्मद अब्दिलाही के साथ एक वर्चुअल समारोह में संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किए। नेतन्याहू ने कहा कि इजरायल सोमालीलैंड के साथ कृषि, स्वास्थ्य, तकनीक और अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाएगा। साथ ही उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सोमालीलैंड की अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होने की इच्छा से अवगत कराने की बात भी कही।

 

क्यों अहम है इजरायल का फैसला

 

1991 में सोमालिया से अलग होने के बाद से सोमालीलैंड अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए संघर्ष कर रहा था। अब तक उसे औपचारिक मान्यता नहीं मिल सकी थी। इजरायल की यह मान्यता आने वाले वर्षों में सोमालीलैंड की राजनयिक स्थिति को मजबूत कर सकती है।

सोमालीलैंड के इथियोपिया, अमेरिका और यूएई जैसे देशों से पहले से अनौपचारिक संपर्क रहे हैं। यूएई के वहां सैन्य अड्डे की मौजूदगी के दावे भी किए जाते रहे हैं।

 

तुर्की क्यों हुआ नाराज

 

इजरायल के इस कदम ने तुर्की को खास तौर पर नाराज कर दिया है। तुर्की के विदेश मंत्रालय ने इसे नेतन्याहू सरकार की गैर-कानूनी और विस्तारवादी नीति करार दिया। मंत्रालय के प्रवक्ता ओन्कू केसेली ने कहा कि यह फैसला क्षेत्रीय और वैश्विक अस्थिरता को बढ़ाने वाला है।

 

तुर्की ने साफ कहा है कि वह सोमालिया की क्षेत्रीय अखंडता का पूरी मजबूती से समर्थन करता है। तुर्की के विदेश मंत्री हाकान फिदान ने इस मुद्दे पर मिस्र, सऊदी अरब और जॉर्डन के विदेश मंत्रियों से बातचीत की है और ट्रंप प्रशासन से भी संपर्क साधा है।

 

सोमालिया-तुर्की की गहरी साझेदारी

 

तुर्की के लिए सोमालिया सिर्फ एक मित्र देश नहीं, बल्कि उसकी अफ्रीका नीति का रणनीतिक स्तंभ है। सोमालिया में तुर्की का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अड्डा मौजूद है। अंकारा ने वर्षों से सोमालिया को सैन्य, आर्थिक और मानवीय सहायता दी है।

ऐसे में सोमालीलैंड को मान्यता देना तुर्की के लिए अपने प्रभाव क्षेत्र में सीधी सेंध जैसा है।

आर्थिक और रणनीतिक झटका

 

यह फैसला तुर्की को आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचा सकता है। तुर्की ने हाल के वर्षों में सोमालिया के साथ ऊर्जा और तेल-गैस क्षेत्र में बड़े समझौते किए हैं। सोमाली तट के पास ड्रिलिंग की तैयारी चल रही है। इजरायल का कदम इन योजनाओं को जटिल बना सकता है।

 

नेतन्याहू बनाम एर्दोगन

 

विशेषज्ञ मानते हैं कि सोमालीलैंड को मान्यता देकर नेतन्याहू ने न सिर्फ सोमालिया, बल्कि तुर्की के प्रभाव को चुनौती देने का रणनीतिक दांव चला है। ग्रीस और साइप्रस के साथ इजरायल की तुर्की-विरोधी गतिविधियां और गाजा वार्ता से अंकारा को बाहर रखना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

 

अब सवाल यह है कि रजब तैयब एर्दोगन नेतन्याहू के इस ‘गेम’ का जवाब कूटनीति, क्षेत्रीय गठजोड़ या आर्थिक दबाव के जरिए कैसे देंगे। इतना तय है कि इस फैसले ने अफ्रीका से लेकर मध्य-पूर्व तक नई भू-राजनीतिक खींचतान को जन्म दे दिया है।

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