
नई दिल्ली। बांग्लादेश में हाल के दिनों में हुई दीपू चंद्र दास और अमृत मंडल की नृशंस लिंचिंग के बाद वहां के हिंदू समुदाय में भय और असुरक्षा का माहौल गहराता जा रहा है। अल्पसंख्यक हिंदू खुद को भीड़ के आतंक और लगातार बढ़ते उत्पीड़न के बीच घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि बांग्लादेश के कई हिस्सों से हिंदू नागरिक भारत सरकार से सीमाएं खोलने और शरण देने की गुहार लगा रहे हैं।
रंगपुर, ढाका, चटगांव और मयमनसिंह जैसे इलाकों में रहने वाले हिंदुओं का कहना है कि वे अपने ही देश में डर के साये में जीने को मजबूर हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कई लोगों ने कहा कि धार्मिक पहचान के कारण उन्हें रोज़ अपमान, धमकियां और ताने सहने पड़ते हैं, लेकिन विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते—क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं उनका अंजाम भी दीपू और अमृत जैसा न हो जाए।
“हम फंस गए हैं, जाने के लिए कोई जगह नहीं”
रंगपुर के एक 52 वर्षीय हिंदू नागरिक ने कहा,
“हम रोज़ अपमान सहते हैं। सड़क पर निकलना भी डरावना हो गया है। जो ताने आज सुनाई देते हैं, वही कल भीड़ की हिंसा में बदल सकते हैं। हम फंस गए हैं, हमारे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है।”
उनका कहना है कि भारत ही एकमात्र देश है, जहां वे सुरक्षित महसूस कर सकते हैं, लेकिन सीमाओं पर कड़ी निगरानी होने के कारण वहां तक पहुंचना भी लगभग असंभव हो गया है।
तारिक रहमान की वापसी से और बढ़ी चिंता
हिंदू समुदाय की चिंता उस वक्त और बढ़ गई, जब बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी (BNP) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की वापसी की चर्चाएं तेज़ हुईं। ढाका के एक हिंदू निवासी ने कहा,
“दीपू दास की हत्या ने हमें झकझोर दिया, लेकिन तारिक रहमान की वापसी ने डर को और गहरा कर दिया है। अगर बीएनपी सत्ता में आई, तो अल्पसंख्यकों के लिए हालात और खराब हो सकते हैं।”
कई हिंदुओं का मानना है कि शेख हसीना की अवामी लीग सरकार ही अब तक उन्हें किसी हद तक सुरक्षा देती आई है।
“संकट की घड़ी में केवल भारत पर भरोसा”
पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों के संगठन निखिल बांग्ला समन्वय समिति के अध्यक्ष डॉ. सुबोध बिस्वास ने कहा,
“बांग्लादेश के हिंदू संकट की इस घड़ी में केवल भारत पर ही भरोसा कर सकते हैं। हिंसा बढ़ती जाएगी, लेकिन सीमाएं बंद रहेंगी। हम सीमा पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं।”
“2.5 करोड़ हिंदू—हम नरसंहार की ओर बढ़ रहे”
सनातन जागरण मंच के एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“बांग्लादेश में करीब 2.5 करोड़ हिंदू रहते हैं। यह कोई छोटी संख्या नहीं है। हम एक नरसंहार की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन हमारी आवाज़ दुनिया तक नहीं पहुंच पा रही।”
मयमनसिंह के एक निवासी ने कहा कि सीमाएं खुलने का मतलब यह नहीं कि सभी हिंदू पलायन कर जाएंगे, लेकिन इससे हिंसा से जान बचाने का एक सुरक्षित रास्ता तो खुलेगा।
“हम सबसे बुरे सपने जैसी जिंदगी जी रहे हैं”
ढाका के एक हिंदू नागरिक ने भावुक शब्दों में कहा,
“हम रोज़ सबसे बुरे सपने जैसी जिंदगी जी रहे हैं। अगर भारत की सीमाएं खुलती हैं, तो कम से कम उत्पीड़न झेल रहे लोगों के लिए एक सुरक्षित विकल्प मौजूद होगा।”
बांग्लादेश में बिगड़ते हालात ने एक बार फिर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब निगाहें भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर टिकी हैं कि वे इस मानवीय संकट पर क्या कदम उठाते हैं।