
नई दिल्ली। कोविड-19 के बाद भारत जिस सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट की ओर तेजी से बढ़ रहा है, वह वायु प्रदूषण है। विशेषज्ञों और डॉक्टरों की चेतावनियों के बीच अब सरकार के स्तर पर भी इसे लेकर गंभीर स्वीकारोक्ति सामने आई है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में माना है कि दिल्ली में लगभग 40 प्रतिशत प्रदूषण परिवहन क्षेत्र से आता है, जो स्थिति की भयावहता को साफ तौर पर उजागर करता है।
यूके में कार्यरत भारतीय मूल के वरिष्ठ डॉक्टरों का कहना है कि प्रदूषण अब केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल (हेल्थ इमरजेंसी) का रूप ले चुका है। लाखों लोग ऐसे हैं, जिनमें एयरवे डिजीज और फेफड़ों की गंभीर समस्याएं विकसित हो चुकी हैं, लेकिन न तो उनकी समय पर जांच हो पा रही है और न ही इलाज।
उत्तर भारत के फेफड़ों को हो चुका है स्थायी नुकसान
लिवरपूल (यूके) में कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट और भारत की कोविड-19 सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य डॉ. मनीष गौतम ने चेतावनी देते हुए कहा कि उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों के फेफड़ों को प्रदूषण से पहले ही स्थायी नुकसान पहुंच चुका है।
उन्होंने कहा कि यदि अब भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया, तो आने वाले वर्षों में इसका असर केवल सांस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दिल, लिवर और पूरे शरीर पर दिखाई देगा।
जहरीली हवा से दिल और फेफड़ों पर दोहरा हमला
डॉक्टरों के अनुसार, गाड़ियों और विमानों से निकलने वाला जहरीला धुआं लोगों को लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए मजबूर कर रहा है। इसका सीधा असर हृदय और फेफड़ों पर पड़ रहा है, जिससे सांस की बीमारियों, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और हार्ट डिजीज के मामलों में तेज़ी से इजाफा हो रहा है।
गडकरी का बयान: बायोफ्यूल और स्वच्छ विकल्प जरूरी
नितिन गडकरी ने संसद में कहा कि परिवहन क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए बायोफ्यूल, इलेक्ट्रिक और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को तेजी से अपनाना जरूरी है। उन्होंने बताया कि सरकार इस दिशा में लगातार रिसर्च और नीति-स्तर पर काम कर रही है, लेकिन चुनौती बड़ी और समय सीमित है।
दिल्ली के अस्पतालों में मरीजों की बाढ़
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर महीने में दिल्ली के अस्पतालों में सांस से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की संख्या 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ी है। इनमें बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है, जो पहली बार इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे। यह संकेत देता है कि प्रदूषण का असर अब हर उम्र वर्ग पर पड़ रहा है।
हालांकि सरकार ने संसद में यह भी कहा कि एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) और बीमारियों के बीच सीधा संबंध साबित करने वाला पुख्ता डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह स्वीकार किया गया कि वायु प्रदूषण सांस की बीमारियों को बढ़ाने वाला बड़ा कारण है।
डराने वाले आंकड़े: लाखों मौतें
चिकित्सा जर्नल लैन्सेट की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022 में भारत में PM2.5 प्रदूषण के कारण 17 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े चेतावनी नहीं, बल्कि खतरे का सायरन हैं।
साफ हवा अब विकल्प नहीं, मजबूरी
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का साफ संदेश है—अब साफ हवा को प्राथमिकता देना कोई विकल्प नहीं, बल्कि मजबूरी बन चुका है। यदि परिवहन, उद्योग और शहरी नीतियों में तुरंत ठोस बदलाव नहीं किए गए, तो आने वाले सालों में यह संकट और गहराएगा और इसकी कीमत देश को अपनी सेहत से चुकानी पड़ेगी।