
वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के H-1B वीजा आवेदन फीस बढ़ाने के फैसले को अदालत ने मान्यता दे दी है। फेडरल डिस्ट्रिक्ट जज बेरिल हॉवेल ने इस फैसले को कानूनी अधिकार के दायरे में बताया और कहा कि राष्ट्रपति ने अपने प्रशासन की इमिग्रेशन पॉलिसी के तहत यह कदम उठाया है। इस फैसले से विदेशी कामगारों, खासकर भारतीय पेशेवरों को बड़ा झटका लगा है।
कोर्ट ने क्या कहा
जज हॉवेल ने अपने फैसले में लिखा, “कांग्रेस ने राष्ट्रपति को आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में व्यापक अधिकार दिए हैं। जब तक ये फैसले कानून के भीतर रहते हैं, अदालत को उनकी राजनीतिक समझ पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है।”
यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इस फैसले पर रोक लगाने के लिए मुकदमा दायर किया था। चैंबर का कहना था कि बढ़ी हुई फीस छोटे व्यवसायों के लिए H-1B वीजा महंगा कर देगी। लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया।
चैंबर के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट और चीफ काउंसल डेरिल जोसेफर ने कहा कि वे निराश हैं और उच्च अदालत में अपील पर विचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह वीजा अमेरिकी कंपनियों और उद्योगों के लिए बेहद जरूरी है।
भारतीयों के लिए बड़ा असर
इस फैसले से अमेरिकी आईटी कंपनियों और विदेशी पेशेवरों पर निर्भर उद्योगों में लागत बढ़ जाएगी। H-1B वीजा से सबसे अधिक भारतीयों को फायदा होता रहा है। अब बढ़ी हुई फीस और बदलाव से भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में नौकरी पाना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
लॉटरी सिस्टम भी बदल गया
H-1B वीजा प्रोग्राम के तहत टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और हेल्थकेयर क्षेत्रों में विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में काम करने की अनुमति मिलती है। सालाना 65,000 वीजा जारी होते हैं। अब तक फीस 2,000 से 5,000 डॉलर थी, जिसे बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दिया गया है।
इसके अलावा, लंबे समय से चल रहे लॉटरी सिस्टम को खत्म कर वेटेड मॉडल लागू किया गया है। इसके तहत उच्च वेतन और बेहतर स्किल वाले आवेदकों को प्राथमिकता दी जाएगी।
इस बदलाव से H-1B वीजा लेने वालों के लिए प्रक्रिया और महंगी तथा प्रतिस्पर्धी हो जाएगी, जिससे भारतीय पेशेवरों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।