Saturday, December 20

पंचायत चुनाव की आहट: गाजियाबाद के गांवों में बढ़ी हलचल, निदेशक पंचायती राज ने मांगी रिपोर्ट

गाजियाबाद, विभु मिश्रा: जिले में पंचायत चुनाव की तैयारियां जोर पकड़ रही हैं। गांव-गांव में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है और प्रशासन भी चुनावी प्रक्रिया को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहा है। हाल ही में पंचायती राज निदेशक ने जिले से ग्राम प्रधानों और पंचायत सदस्यों के कार्यकाल संबंधी विस्तृत जानकारी तलब की है। इसके बाद ब्लॉक स्तर के अधिकारी निर्धारित प्रारूप में सूचनाएं जुटाने में जुट गए हैं।

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जैसे ही संभावित प्रत्याशियों को इस कार्यवाही की जानकारी मिली, उन्होंने गांवों का दौरा शुरू कर दिया। लोग घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क कर अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगे हैं।

मुरादनगर और मोदीनगर नगरपालिकाओं के विस्तार के बाद दर्जनभर से अधिक गांव शहरी सीमा में शामिल हो चुके हैं। इन क्षेत्रों के भोजपुर, मुरादनगर और रजापुर ब्लॉक की कई ग्राम पंचायतों में 2021 में चुनाव हुए थे। अब कोर्ट के निर्देशों के बाद आगामी चुनाव की संभावनाओं ने देहात क्षेत्रों में चुनावी माहौल और गर्म कर दिया है। गांवों में होर्डिंग, पोस्टर और बैनर नजर आने लगे हैं, वहीं ग्राम प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य पद के दावेदार मैदान में उतर चुके हैं।

मतदाताओं पर विशेष नजर:
संभावित प्रत्याशियों ने मतदाताओं की पसंद-नापसंद जानने के लिए गांवों में बैठकों और जनसंपर्क का सिलसिला शुरू कर दिया है। वर्ष 2021 में मई माह में इन ग्राम पंचायतों की पहली बैठक हुई थी। अब प्रधानों और सदस्यों के कार्यकाल समाप्ति की संभावित तिथियों से संबंधित सूचनाएं विभागीय स्तर पर जुटाई जा रही हैं।

निर्धारित प्रारूप में मांगी गई जानकारी:
पंचायती राज निदेशालय ने विशेष प्रारूप में विकासखंड का नाम, ग्राम पंचायत, पहली बैठक की तारीख और कार्यकाल समाप्ति की संभावित तिथि जैसी जानकारियां मांगी हैं। जिला पंचायत अधिकारी प्रदीप कुमार पांडे ने खंड विकास अधिकारियों और सहायक विकास अधिकारियों को समय पर सूचनाएं संकलित कर निदेशालय को भेजने के निर्देश दिए हैं।

एसआईआर से प्रत्याशियों की बढ़ी बेचैनी:
चुनाव के करीब आते ही एसआईआर (विशेष पुनरीक्षण अभियान) ने उम्मीदवारों की बेचैनी बढ़ा दी है। बड़ी संख्या में मतदाता रोजगार या अन्य कारणों से शहरों में रहते हैं। प्रत्याशी उन्हें मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए टीमें बना रहे हैं, जो फोन और सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी जुटा रही हैं कि कौन सा वोटर चुनाव के समय गांव आ पाएगा।

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक दबाव, रिश्तेदारी और चुनावी माहौल के चलते कई मतदाता गांव लौट रहे हैं। प्रत्याशी मानते हैं कि बाहर रहने वाले मतदाता चुनाव के नतीजों में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए उन्हें साधना हर उम्मीदवार की प्राथमिकता बन गई है।

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