Saturday, December 20

क्या AI इंसानों की जगह ले लेगा? शार्क टैंक जज अनुपम मित्तल का स्पष्ट जवाब—‘इंसानी दिमाग की बराबरी अभी बहुत दूर’

नई दिल्ली। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को लेकर दुनियाभर में यह बहस लगातार तेज होती जा रही है कि क्या भविष्य में मशीनें इंसानों की जगह ले लेंगी। इसी चर्चा के बीच शार्क टैंक इंडिया के जज और सफल उद्यमी अनुपम मित्तल ने इस मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखी है। उनका मानना है कि मौजूदा दौर में AI, इंसानी दिमाग की जटिलता को समझने और उसकी नकल करने से अभी बहुत दूर है।

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अनुपम मित्तल ने इस विषय पर लिंक्डइन पर एक विस्तृत पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने इंसानी दिमाग और AI के बीच बुनियादी अंतर को आसान शब्दों में समझाया। उन्होंने लिखा कि इंसानी दिमाग बेहद कम ऊर्जा खर्च करके असाधारण काम करता है, जबकि AI को उसी स्तर पर पहुंचने के लिए विशाल संसाधनों की जरूरत पड़ती है।

20 वॉट बनाम फुटबॉल ग्राउंड जितना डेटा सेंटर

अनुपम मित्तल के अनुसार, इंसानी दिमाग लगभग 20 वॉट ऊर्जा में ही सोचने, समझने, सीखने और निर्णय लेने जैसे जटिल कार्य कर लेता है। यह ऊर्जा एक साधारण बल्ब से भी कम है। इसके विपरीत, यदि आज AI को इंसानी दिमाग की बराबरी करनी हो, तो उसे फुटबॉल मैदान जितने बड़े डेटा सेंटर को लगातार चलाना पड़ेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि अगर AI इंसानी दिमाग के जैविक (बायोलॉजिकल) हिस्सों की पूरी नकल करने की कोशिश करे, तो उसे पृथ्वी के आकार के कंप्यूटर की जरूरत पड़ सकती है। मित्तल के मुताबिक, लोग अक्सर इस बुनियादी फर्क को नजरअंदाज कर देते हैं।

AI में क्षमता है, लेकिन सीमाएं भी

अनुपम मित्तल ने यह भी स्वीकार किया कि AI कई क्षेत्रों में बेहद सक्षम साबित हो रहा है। ऑटोमेशन, बार-बार किए जाने वाले काम, डेटा एनालिसिस और पैटर्न पहचानने जैसे मामलों में AI शानदार प्रदर्शन कर रहा है। हालांकि, उनका कहना है कि क्रिएटिविटी, समझदारी और विवेकपूर्ण निर्णय जैसी क्षमताएं तुरंत विकसित नहीं हो सकतीं।

उन्होंने कहा कि इंसान ने इन गुणों को लाखों वर्षों के विकास के बाद हासिल किया है। अगर AI को इंसानी रचनात्मकता की जगह लेनी है, तो यह केवल GPUs या तेज कंप्यूटिंग से संभव नहीं होगा। इसके लिए इंटेलिजेंस को कंप्यूट करने के तरीके में ही बड़ा और मौलिक बदलाव करना पड़ेगा।

इंसानी समझदारी का विकल्प नहीं बनेगा AI

अनुपम मित्तल का मानना है कि AI भविष्य में एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में जरूर उभरेगा, लेकिन वह इंसानी समझदारी का विकल्प नहीं बन पाएगा। उन्होंने लिखा कि दुनिया की सारी जटिलताएं इंसानी दिमाग में सहज रूप से समा जाती हैं, जो ऑक्सीजन पर चलता है और बेहद कम गर्मी पैदा करता है। यही वह शक्ति है, जिसकी नकल AI के लिए संभव नहीं है।

निष्कर्ष:
अनुपम मित्तल की राय साफ है—AI इंसानों की मदद करने वाला एक मजबूत साधन जरूर है, लेकिन इंसानी सोच, समझ और रचनात्मकता की जगह लेना फिलहाल उसके बस की बात नहीं। तकनीक आगे बढ़ेगी, लेकिन इंसान की भूमिका बनी रहेगी।

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