
प्रतियोगी परीक्षाओं और इंटरव्यू में अक्सर पूछा जाने वाला सवाल है – “भारत में कोई बिल कानून कैसे बनता है?” यह सवाल UPSC, SSC, बैंकिंग, रेलवे और स्टेट PCS जैसी परीक्षाओं में बहुत अहम माना जाता है।
भारत में कानून बनाने की प्रक्रिया संसद में होती है। राजनीतिक दल या सांसद अपने प्रस्ताव संसद के सामने बिल (Bill) के रूप में रखते हैं। बिल केवल एक मसौदा होता है और यह तब तक कानून नहीं बनता जब तक इसे संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – से मंजूरी न मिल जाए और अंततः राष्ट्रपति की स्वीकृति न प्राप्त हो।
कानून बनाने की प्रक्रिया कब शुरू होती है?
कानून बनाने की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब किसी भी सदन में बिल पेश किया जाता है। यदि बिल किसी मंत्री द्वारा लाया जाता है तो उसे सरकारी बिल (Government Bill) कहते हैं, और यदि कोई सांसद लाता है तो उसे प्राइवेट बिल (Private Bill) कहा जाता है।
संसद में बिल को कितनी बार पढ़ा जाता है?
संसद में आमतौर पर बिल को तीन बार पढ़ा जाता है:
- पहला वाचन: बिल को स्वीकार किया जाता है या उस पर सामान्य चर्चा होती है।
- दूसरा वाचन: बिल पर विस्तार से चर्चा होती है, इसे चयन समिति (Selection Committee) को भेजा जा सकता है, और बिल की धाराओं (Clauses) पर चर्चा और वोटिंग होती है।
- तीसरा वाचन: तय किया जाता है कि बिल पास किया जाएगा या उसमें बदलाव किए जाएंगे।
यदि बिल दोनों सदनों से पास हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद ही बिल कानून (Law) बन जाता है। यदि बिल राज्य स्तर पर पारित किया गया हो, तो राज्य के राज्यपाल की सहमति भी जरूरी होती है।
संक्षेप में:
- बिल = मसौदा
- संसद के दोनों सदन = मंजूरी
- राष्ट्रपति = अंतिम स्वीकृति
- राज्य विधेयक = राज्यपाल की सहमति
यह प्रोसेस न केवल भारत के लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को दर्शाती है बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं और जनरल नॉलेज के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।
लेखक: शुभम