
इस्लामाबाद: पाकिस्तान की राजनीति और सेना के बीच असंतुलन गहरा रहा है। देश के आर्मी चीफ फील्ड मार्शल असीम मुनीर जल्द ही अमेरिका के दौरे पर जा सकते हैं। यह उनकी अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से तीसरी मुलाकात होगी, जिसमें गाजा में प्रस्तावित ‘इंटरनेशनल स्टैबिलाइजेशन फोर्स’ पर चर्चा प्रमुख विषय हो सकती है।
अमेरिकी दबाव और गाजा फोर्स
अमेरिका की योजना के तहत पाकिस्तान की सेना को गाजा में तैनात किया जा सकता है, ताकि हमास को हथियार विहीन किया जा सके। सूत्रों के अनुसार, ट्रंप चाहते हैं कि मुस्लिम-बहुल देशों से बहुराष्ट्रीय बल का समर्थन मिले और पाकिस्तान इसमें स्वाभाविक रूप से शामिल हो।
पाकिस्तान की राजनीतिक और सामाजिक तैयारियों पर सवाल
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान राजनीतिक और सामाजिक रूप से इस कदम के लिए तैयार नहीं है। गाजा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सेना की तैनाती यदि अमेरिका-इजरायल एजेंडा से जोड़ी गई, तो यह घरेलू भड़काऊ प्रतिक्रिया और हिंसा का कारण बन सकती है।
घरेलू विपक्ष और टीएलपी का असर
पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक (TLP) और अन्य कट्टरपंथी संगठनों की प्रतिक्रिया गंभीर हो सकती है। सोशल मीडिया और मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर विरोध की आग जल्दी फैल सकती है। सेना प्रमुख असीम मुनीर के फैसले पर सीधे सार्वजनिक भरोसा और राजनीतिक स्थिरता दांव पर लग सकता है।
इतिहास का सबक
विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान का अतीत दिखाता है कि विदेशी युद्धों में सैन्य भागीदारी—विशेषकर अमेरिकी रणनीतियों के साथ—अक्सर आंतरिक कट्टरता, हिंसा और संस्थागत क्षरण लेकर आती है। अफगानिस्तान इसका सबसे बड़ा उदाहरण रहा है।
सड़क बनाम बैरक का संकट
अगर सेना का फैसला जनता की भावना के विपरीत गया, तो पहली बार पाकिस्तान में ‘सड़क बनाम बैरक’ जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। धार्मिक दल, विपक्ष और नागरिक समाज इसे “विदेशी दबाव में पाकिस्तानी सैनिकों की कुर्बानी” के रूप में प्रचारित करने से नहीं चूकेंगे।
विशेषज्ञों की चेतावनी: असीम मुनीर का अगला कदम पाकिस्तान की आंतरिक स्थिरता के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। किसी भी गलती का खामियाजा देश के संस्थानों और जनता दोनों को भुगतना पड़ सकता है।