
काबुल/वॉशिंग्टन – अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दिए बयान में साफ कहा है कि उनका प्रशासन इस एयरबेस को दोबारा अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रहा है। ट्रंप ने तालिबान को चेतावनी देते हुए कहा – “अगर अफगानिस्तान ने बगराम एयरबेस अमेरिका को वापस नहीं दिया, तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।”
ट्रंप का तर्क है कि यह एयरबेस भौगोलिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। काबुल से 60 किमी दूर स्थित यह ठिकाना अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, भारत, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, चीन और रूस जैसे देशों पर निगरानी रखने की क्षमता रखता है। उनका दावा है कि चीन के परमाणु प्रतिष्ठान इस बेस से महज एक घंटे की दूरी पर हैं और यही वजह है कि बगराम अमेरिकी सुरक्षा और रणनीति के लिए अहम है।
मगर, तालिबान प्रशासन ने ट्रंप की मांग को ठुकराते हुए साफ कहा – “अफगानिस्तान अपनी एक इंच जमीन भी किसी को नहीं देगा। बगराम एयरबेस पूरी तरह अफगानिस्तान के नियंत्रण में रहेगा।” तालिबान प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने ट्रंप को “यथार्थवादी नीति अपनाने” की नसीहत दी।
इस विवाद पर पाकिस्तान, चीन, रूस और ईरान भी एकजुट होकर सामने आए हैं। संयुक्त बयान में इन देशों ने कहा है कि अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य ठिकाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। उनका मानना है कि अमेरिका को सैन्य कब्जे की बजाय अफगानिस्तान की आर्थिक बहाली और पुनर्निर्माण पर ध्यान देना चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार, बगराम एयरबेस पर यह रस्साकशी सिर्फ अफगानिस्तान का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह चीन-अमेरिका और रूस-अमेरिका के बीच चल रही नई भू-राजनीतिक जंग का हिस्सा है। चीन और रूस जहां तालिबान के साथ खड़े हैं, वहीं ट्रंप इसे अमेरिकी प्रभुत्व बहाल करने का साधन मान रहे हैं।
👉 कुल मिलाकर, सवाल यही है कि क्या अमेरिका बगराम एयरबेस को हथियाने के लिए किसी बड़े टकराव की तरफ बढ़ेगा या फिर यह मसला कूटनीति से सुलझेगा। लेकिन इतना तय है कि इस विवाद ने एशिया की राजनीति को और ज्यादा अस्थिर कर दिया है।
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