Wednesday, December 17

25 साल तक न्याय से वंचित रही महिला लेक्चरर, हाईकोर्ट की सख्ती—एक माह में भुगतान नहीं तो बढ़ेगा ब्याज

झुंझुनूं। राजस्थान के चिड़ावा स्थित एक गर्ल्स कॉलेज द्वारा सेवानिवृत्त महिला लेक्चरर को पिछले 25 वर्षों से बकाया भुगतान न दिए जाने के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि एक माह के भीतर पूरी राशि का भुगतान किया जाए, अन्यथा बकाया पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।

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यह मामला चिड़ावा के इंदिरा गांधी बालिका निकेतन कॉलेज से जुड़ा है, जहां कार्यरत रही महिला लेक्चरर शकुंतला पाटनी को लंबे समय तक न्याय के लिए भटकना पड़ा। अदालत के आदेशों की अनदेखी करते हुए कॉलेज प्रबंधन और संबंधित विभाग वर्षों तक भुगतान टालते रहे, जिसे हाईकोर्ट ने गंभीर और दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है।

सिविल कोर्ट के आदेश भी रहे अनसुने

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपमन की एकल पीठ ने की। याचिका में बताया गया कि 12 जून 2000 को ट्रिब्यूनल ने महिला लेक्चरर को पुनः सेवा में लेने और सभी परिलाभ देने के आदेश दिए थे। इसके बाद सिविल कोर्ट ने कॉलेज को 15 लाख 57 हजार 937 रुपये, 9 प्रतिशत ब्याज सहित भुगतान करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद 25 साल तक राशि का भुगतान नहीं किया गया।

“न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान”

हाईकोर्ट ने इस पूरे घटनाक्रम को न्याय व्यवस्था के लिए चिंता का विषय बताते हुए कहा कि न्याय में अत्यधिक देरी, न्याय से वंचित करने के बराबर है। कोर्ट ने निर्देश दिए कि याचिकाकर्ता के सभी सेवानिवृत्त लाभों की गणना 30 जून 2026 तक कर भुगतान सुनिश्चित किया जाए।

एक माह की अंतिम मोहलत

अदालत ने राज्य सरकार और संबंधित कॉलेज को अंतिम चेतावनी देते हुए कहा है कि एक माह के भीतर सिविल कोर्ट द्वारा निर्धारित राशि का भुगतान किया जाए। यदि तय समयसीमा में भुगतान नहीं किया गया, तो बकाया राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना अनिवार्य होगा।

हाईकोर्ट के इस फैसले से वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा कर रही महिला लेक्चरर को बड़ी राहत मिली है। यह आदेश उन संस्थानों के लिए भी सख्त संदेश है, जो अदालत के आदेशों को हल्के में लेकर कर्मचारियों के अधिकारों का हनन करते हैं।

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