Wednesday, December 17

गोवा में चेकिंग के दौरान IAS की गाड़ी रोके जाने पर विवाद, शिकायत के बाद SP ने पुलिसकर्मियों से करवाई उठक-बैठक, DGP ने जताई आपत्ति

पणजी। गोवा में वाहन जांच के दौरान एक केंद्रीय सेवा के आईएएस अधिकारी की कार रोके जाने को लेकर बड़ा प्रशासनिक विवाद सामने आया है। घटना उत्तरी गोवा के सांता क्रूज़ क्षेत्र की है, जहां नाकाबंदी के दौरान पुलिस ने आम वाहनों की तरह एक इनोवा कार को जांच के लिए रोका। बाद में पता चला कि कार में सवार व्यक्ति दिल्ली से गोवा आए एक आईएएस अधिकारी थे।

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चेकिंग से नाराज हुए IAS अधिकारी

जानकारी के अनुसार, आईएएस अधिकारी केंद्र सरकार के एक विभाग में पदस्थ हैं और गोवा निजी दौरे पर पहुंचे थे। चेकिंग के दौरान जब पुलिसकर्मियों ने ड्राइवर से वाहन आगे बढ़ाकर लाइसेंस दिखाने को कहा, तो अधिकारी ने अपना पहचान पत्र दिखाते हुए स्वयं को आईएएस बताते हुए नाराजगी जताई और वहां से निकल गए।

पुलिस का आरोप: सामान सड़क पर फेंका

नाकाबंदी ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों का दावा है कि कुछ देर बाद वही अधिकारी वापस लौटे, अपनी गाड़ी की डिक्की खोली और सामान सड़क पर फेंकते हुए कहा कि अब गाड़ी की जांच करें। इसके बाद उन्होंने खुद ही सामान उठाकर दोबारा डिक्की में रखा और वहां से चले गए। पुलिस का कहना है कि बाद में अधिकारी ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को फोन कर पूरे घटनाक्रम की शिकायत दर्ज कराई।

SP ने करवाई उठक-बैठक

मामले की जांच उत्तरी गोवा के पुलिस अधीक्षक हरिश्चंद्र मडकैकर को सौंपी गई। इसके बाद एसपी ने नाकाबंदी में तैनात ओल्ड गोवा पुलिस स्टेशन और भारतीय रिजर्व बटालियन (IRBN) से जुड़े पुलिसकर्मियों को अपने पोरवोरिम स्थित कार्यालय बुलाया और कथित तौर पर उनसे कान पकड़कर उठक-बैठक करवाई।

DGP ने कार्रवाई को बताया अनुचित

इस पूरे घटनाक्रम पर गोवा के पुलिस महानिदेशक आलोक कुमार ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि एसपी द्वारा अपनाया गया तरीका अनुचित था। डीजीपी ने स्पष्ट किया कि पुलिसकर्मियों को शारीरिक दंड देना नियमों के अनुरूप नहीं है।

उन्होंने बताया कि एसपी को निर्देश दिए गए हैं कि भविष्य में ऐसी स्थिति में नियमों और विभागीय प्रक्रिया का पालन किया जाए। साथ ही नाकाबंदी ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों को यह भी समझाया जाए कि वे जांच के दौरान विनम्रता और संयम बनाए रखें।

मनोबल पर असर की आशंका

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की सार्वजनिक सजा से पुलिस बल का मनोबल गिरता है और कर्मियों में अपने कर्तव्यों को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा होती है। मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि कानून सबके लिए समान है या नहीं, और अनुशासन बनाए रखने के लिए किस हद तक कार्रवाई उचित है।

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