Monday, December 15

लखनऊ का दिल हजरतगंज: 200 साल पुराना इलाका, नवाबी शान की पहचान

लखनऊ (राहुल पराशर): उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का हजरतगंज इलाका शहर का दिल कहा जाता है। यह बाजार और सांस्कृतिक केंद्र होने के साथ ही नवाबी शान और तहजीब की पहचान भी है। लगभग 200 साल पुराना यह इलाका नवाबी दौर, अंग्रेजी हुकूमत और आधुनिक भारत की बदलती तस्वीरों का साक्षी रहा है।

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इतिहास और नामकरण
इतिहासकारों के अनुसार, अवध के छठे शासक नवाब सआदत अली खान ने सन 1810 में हजरतगंज को बसाया और दिलकुशा से रेजीडेंसी तक रोड बनाई। इसके दोनों ओर व्यापारिक, अर्ध-व्यापारिक और आवासीय इमारतें बनाई गईं।

सन 1827 में नवाब नसीर-उद-दीन हैदर शाह ने चाइना बाजार और कप्तान बाजार शुरू किए। सन 1842 में इसे नवाब अमजद अली शाह के नाम पर ‘हजरतगंज’ कहा जाने लगा। नवाबी उपनाम ‘हजरत’ के कारण यह नाम प्रसिद्ध हुआ। अमजद अली शाह की मृत्यु के बाद उन्हें हलवासिया के सामने बने इमामबाड़े में दफनाया गया।

हजरतगंज की वास्तुकला और ऐतिहासिक इमारतें
हजरतगंज में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जो नवाबी वास्तुकला और सौंदर्य की गवाही देती हैं। इनमें शामिल हैं: तारों वाली कोठी, छोटी छतर मंज़िल (वर्तमान स्वास्थ्य भवन), दर्शन विलास और लाल बारादरी।
रिंग थिएटर, जो वर्तमान में पोस्ट ऑफिस है, ब्रिटिश अधिकारियों के लिए बॉलरूम और थिएटर था और काकोरी कांड की सुनवाई यहीं हुई। सिब्तैनाबाद इमामबाड़ा, इंडियन कॉफी हाउस और अन्य इमारतें भी नवाबी वैभव को दर्शाती हैं।

आधुनिक हजरतगंज
आज हजरतगंज न केवल व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र है, बल्कि शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, रेस्टोरेंट, होटल, थिएटर, कैफे और ऑफिस का भी प्रमुख स्थल है। हजरतगंज मेट्रो स्टेशन से जुड़ा हुआ है, जो इसे आधुनिक लखनऊ के साथ जोड़ता है।

हजरतगंज की गलियां, नक्काशीदार इमारतें और ऐतिहासिक स्मारक आज भी लखनऊ की तहजीब, अदब और नवाबी शान का प्रतीक बने हुए हैं।

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