
रायपुर। कभी माओवादियों का सबसे मजबूत गढ़ माना जाने वाला एमएमसी (महाराष्ट्र–मध्य प्रदेश–छत्तीसगढ़) विशेष क्षेत्र अब अपने अस्तित्व के अंतिम छोर पर है। एक समय जहां यह इलाका दंडकारण्य के बाहर नक्सलियों का सबसे खतरनाक ज़ोन माना जाता था, वहीं आज यहां केवल छह माओवादी बचे हैं। ये छह आतंकी लगातार जंगल बदलकर अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं और तीनों राज्यों की सुरक्षा एजेंसियाँ 24 घंटे इनकी तलाश में जुटी हैं।
एमएमसी जोन के पतन की कहानी 28 नवंबर से शुरू हुई, जब गोंदिया में 11 माओवादी आत्मसमर्पण कर गए। इनमें हॉक फोर्स इंस्पेक्टर आशीष शर्मा की हत्या का मुख्य आरोपी विकास नागपुरे उर्फ अनंत भी शामिल था। इसके बाद नक्सली ढांचा दरकना शुरू हो गया।
10 दिनों में 33 माओवादी हुए सरेंडर
महाराष्ट्र–मध्य प्रदेश–छत्तीसगढ़ को जोड़ने वाला यह क्षेत्र कभी लाल आतंक का अभेद्य किला था। गोंदिया से बालाघाट, खैरागढ़ से कबीरधाम तक फैले इस जोन में एक दशक तक घात लगाकर हमले, आईईडी ब्लास्ट और कई हत्याओं को अंजाम दिया जाता रहा।
लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं।
पिछले दस दिनों में 33 माओवादी हथियार डाल चुके हैं। मध्य प्रदेश के बालाघाट में 10 नक्सलियों ने मुख्यमंत्री मोहन यादव की मौजूदगी में आत्मसमर्पण किया।
कबीर सोड़ी के सरेंडर ने बदल दिया खेल
सरेंडर करने वालों में दो विशेष क्षेत्रीय समिति के सदस्य भी थे। इनमें कुख्यात माओवादी सुरेंद्र उर्फ कबीर सोड़ी भी शामिल था। उसने INSAS राइफल, AK-47 समेत कई हथियार पुलिस को सौंपे।
कबीर के आत्मसमर्पण से उत्तर एमएमसी की पूरी संरचना ढह गई और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से मंडला तक फैले घने जंगलों में माओवादियों की पकड़ समाप्त हो गई।
रामधर मजी की हार ने खत्म कर दिया एमएमसी का तिलिस्म
सबसे बड़ा झटका तब लगा जब एमएमसी जोन के निर्णायक नेता रामधर मजी ने भी 11 साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। मजी सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सदस्य और 14-सदस्यीय हमलावर दस्ते का प्रमुख कमांडर था।
राजनांदगांव, खैरागढ़ और बालाघाट गलियारे में हुए कई हमलों का वह मास्टरमाइंड था।
तेलुगु, गोंडी और हिंदी का जानकार, वह 30–40 किमी लगातार पैदल चलने में सक्षम था। इसी वजह से उसे माओवादी संगठन का “फील्ड लेवल ब्रेन” कहा जाता था।
‘डेडली ग्रुप’ की सुरक्षा में चलता था रामधर
रामधर की सुरक्षा में सात भारी हथियारों से लैस माओवादी तैनात रहते थे—
- AK-47 के साथ सुकाश उर्फ रंगा
- SLR के साथ मुन्ना
- राइफल लिए राम सिंह
- INSAS राइफलों के साथ रोनी, लक्ष्मी और सागर
यह टीम आंतरिक रूप से ‘डेडली ग्रुप’ के नाम से जानी जाती थी।
थक चुके थे माओवादी, टूट गया था संपर्क
खुफिया दस्तावेज बताते हैं कि संगठन बिखर चुका था।
सप्लाई लाइन टूट चुकी थी, दंडकारण्य के नेताओं से संपर्क खत्म हो गया था। कई माओवादी लड़ाई छोड़ने के लिए तैयार बैठें थे।
रामधर ने सरेंडर के बाद कहा—
“हम केंद्रीय समिति से मार्गदर्शन का इंतज़ार करते रहे, लेकिन संपर्क टूट गया। अनंत के सरेंडर के बाद समझ आया कि संघर्ष समाप्त हो चुका है। अब संविधान के भीतर सामाजिक सेवा करेंगे।”
अब एमएमसी में बचे कौन?
सरेंडर की लहर के बाद अब इस क्षेत्र में मात्र छह माओवादी सक्रिय हैं—
- रामधर मजी के टूटे हुए मलाजखंड दलम के दो सदस्य
- अनंत की डारे खासा यूनिट के चार सदस्य
पुलिस के अनुसार, ये छह माओवादी भी नेतृत्व से कटे हुए हैं, सप्लाई से वंचित हैं और जल्द ही या तो आत्मसमर्पण करेंगे या पकड़े जाएंगे।
