
रांची। केंद्र सरकार भले ही दावा कर रही हो कि नक्सल आंदोलन को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है, लेकिन झारखंड के सारंडा क्षेत्र की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है। हाल ही में हुई नक्सली और पुलिस मुठभेड़ ने इस दावे की पोल खोल दी।
विशेषज्ञों के अनुसार, हिडमा नक्सलियों की छोटी टीम का कमांडर था और उसका इलाका मुख्य रूप से छत्तीसगढ़-बस्तर रहा। वहीं, प्रशांत बोस उर्फ किशन दा माओवादी आंदोलन के शुरुआती कमांडर थे। वे भाकपा-माओवादी की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे।
2001 का हमला और 16 जवानों की मौत
साल 2001 की दिवाली के दिन, प्रशांत बोस और उनकी पत्नी शीला मरांडी ने धनबाद जिले के तोपचांची स्थित जैप कैंप पर हमला किया। इस हमले में 15 पुलिस अधिकारी और जवान शहीद हो गए। पूरी कैंप को नष्ट कर दिया गया और हथियार व गोला-बारूद लूट लिया गया।
100 से अधिक मामले दर्ज
एक करोड़ रुपये के इनामी नक्सली प्रशांत बोस पर झारखंड, बिहार, ओडिशा समेत कई राज्यों में 100 से अधिक मामले दर्ज हैं। इनमें रांची के बुंडू, खूंटी, मुरहू, गुमला, चाईबासा, जमशेदपुर, हजारीबाग, बोकारो और अन्य जिलों में दर्ज मामलों का विवरण शामिल है।
उम्र के आखिरी पड़ाव में गीता का अध्ययन
अब उम्र के आखिरी पड़ाव में प्रशांत बोस बिरसा मुंडा जेल में हैं। जेल सूत्रों के अनुसार, उन्होंने भागवत गीता का अंग्रेजी संस्करण पिछले तीन महीनों में दो बार इश्यू कराया है। बीमारियों से जूझते हुए भी उनका ज्ञान की ओर जज्बा बरकरार है।
पूर्व में बंदूकों और बारूद के साथ आतंक फैलाने वाला यह माओवादी कमांडर अब ज्यादातर समय पढ़ाई और आराम में बिताते हैं। जेल में गीता पढ़कर वे जीवन का गहरा अर्थ समझने की कोशिश कर रहे हैं।