
रायपुर। बस्तर का सबसे खौफनाक नक्सली कमांडर मादवी हिडमा अब इतिहास बन चुका है। हिडमा की मौत के बाद पूर्व नक्सली बद्रन्ना ने मीडिया को कई चौंकाने वाले खुलासे किए। बद्रन्ना ने बताया कि उन्होंने ही हिडमा को बाल सैनिक के रूप में नक्सली संगठन में भर्ती किया था और केवल सात दिन बाद वह प्लाटून में शामिल हो गया था।
पहली बार हिडमा से मुलाकात
बद्रन्ना ने याद किया कि 1990 के दशक के अंत में सुकमा के पूवर्ती गांव में वह माओवादी संगठन के लिए एक एरिया प्लाटून बनाने के डिप्टी कमांडर थे। उसी समय उन्होंने एक लंबे, दुबले-पतले आदिवासी लड़के को देखा—जो बाद में मादवी हिडमा बना।
बद्रन्ना ने कहा, “मैंने ही उसे संगठन में शामिल किया और उसका पहला हथियार थमाया। वह शुरुआत में मेरे पास नहीं आया, मैं उसके पास गया।”
बाल सैनिक से बटालियन कमांडर तक
बद्रन्ना के अनुसार, हिडमा की उम्र लगभग 15-16 साल थी। उसके पास नेतृत्व के शुरुआती संकेत थे और उसकी जुझारूपन ने उसे संगठन में तेजी से ऊपर चढ़ा दिया। संगठन में शामिल होने के सात दिन के भीतर ही वह प्लाटून में शामिल हो गया।
हिडमा की मौत और बद्रन्ना की प्रतिक्रिया
हिडमा की मौत की खबर से बद्रन्ना गहरे सदमे में हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें हमेशा विश्वास था कि हिडमा किसी भी मुठभेड़ में कम से कम दो-तीन लोगों को मारकर ही मरेगा। बद्रन्ना ने याद करते हुए कहा, “वह गरीब आदिवासी लड़का था, मेरी वजह से पार्टी में शामिल हुआ था।”
संगठन और नियमों के प्रति प्रतिबद्धता
बद्रन्ना ने बताया कि उन्होंने कभी हिडमा को आंदोलन छोड़ने की सलाह नहीं दी। संगठन के नियमों के अनुसार, किसी को भी आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। 2000 में खुद आत्मसमर्पण करने के बाद उन्होंने संगठन से पूरी तरह संपर्क तोड़ लिया था।
सपनों से वास्तविकता तक
बद्रन्ना ने कहा कि हिडमा ने सुकमा के एक छोटे आदिवासी गांव से निकलकर माओवादी पदानुक्रम के उच्चतम स्तर तक पहुँच कर बटालियन कमांडर और केंद्रीय समिति का सदस्य बनकर अद्भुत छाप छोड़ी।
उन्होंने स्वीकार किया कि हिडमा तेजी से सीखने वाला और जुझारू था। बद्रन्ना ने अपने कर्तव्य और अपराधबोध के साथ उस लड़के को संगठन में शामिल किया, जिसका जीवन अंततः खून-खराबे और हिंसा से भरा रहा।