
कोलकाता।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय विवाह विवादों से जुड़े एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि विवाह भारत में हुआ हो और पति-पत्नी भारतीय नागरिक हों, तो विदेशी अदालत तलाक और भरण-पोषण (मेंटेनेंस) से जुड़े मामलों में स्वतः अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) का दावा नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य और सुप्रतिम भट्टाचार्य की खंडपीठ ने 15 दिसंबर को दिए अपने आदेश में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक की सुनवाई वही जिला न्यायालय कर सकता है, जिसकी स्थानीय सीमा में पति-पत्नी अंतिम बार साथ रहते थे—और यह न्यायालय भारतीय होना चाहिए, न कि विदेशी।
ब्रिटेन की अदालत के आदेश पर रोक
हाई कोर्ट ने ब्रिटेन की पारिवारिक अदालत द्वारा पति को भारी भरकम मेंटेनेंस देने के आदेश पर रोक लगाते हुए निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें पत्नी को ब्रिटेन में कार्यवाही आगे बढ़ाने से रोका गया था।
अदालत ने कहा कि केवल इस आधार पर कि पत्नी विदेश में रह रही है, किसी विदेशी अदालत को तलाक और भरण-पोषण के मामलों की सुनवाई का अधिकार नहीं मिल जाता।
हालांकि अपवाद की संभावना भी बताई
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि यह प्रथम दृष्टया साबित हो जाए कि पत्नी वास्तव में विदेश में स्थायी रूप से निवास कर रही है और दोनों पति-पत्नी अंतिम बार वहीं पति-पत्नी के रूप में साथ रहे हों, तो उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए विदेशी अदालत का अधिकार क्षेत्र बन सकता है।
लेकिन मौजूदा मामले में यह स्थिति स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं हो पाई।
क्या है पूरा मामला
दंपत्ति का विवाह 15 दिसंबर 2018 को कोलकाता में हुआ था
पत्नी पढ़ाई और कार्य वीजा पर ब्रिटेन गई
पति ने 4 सितंबर 2024 को अलीपुर अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की
इसके बाद पत्नी ने 10 अक्टूबर 2024 को ब्रिटेन की अदालत में तलाक और फिर मेंटेनेंस की याचिका दायर की
16 मई 2025 को ब्रिटेन की अदालत ने पति को भारी मेंटेनेंस देने का आदेश दिया
अलीपुर जिला अदालत ने इस आदेश को यह कहते हुए रोक दिया कि:
पति पहले ही भारत में तलाक की याचिका दाखिल कर चुका था
पत्नी ब्रिटेन की स्थायी निवासी नहीं है
मेंटेनेंस की राशि पति की आय से अधिक और दमनकारी है
हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण अवलोकन
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि पति ने ब्रिटेन की अदालत में पेश होकर जवाब दाखिल किया और सबूत दिए, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि वह वहां अपनी बात रखने की स्थिति में नहीं था।
हालांकि, अंतिम निर्णय भारत में लंबित तलाक याचिका के निपटारे के बाद ही निर्णायक माना जाएगा।
कानूनी दृष्टि से अहम फैसला
यह फैसला उन हजारों मामलों के लिए नज़ीर बन सकता है, जहां भारतीय नागरिकों के वैवाहिक विवाद विदेशों की अदालतों में ले जाए जाते हैं। अदालत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि भारतीय विवाह कानूनों की सर्वोच्चता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।