
नई दिल्ली।
भारत के दो करीबी पड़ोसी देश — बांग्लादेश और नेपाल — इस समय राजनीतिक रूप से बेहद अहम दौर से गुजर रहे हैं। दोनों देशों में चुनावी सुगबुगाहट तेज़ है, और भारत अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ के तहत वहां की हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रखे हुए है।
🔹 बांग्लादेश: सत्ता की जंग और भारत की चिंता
बांग्लादेश में अगले साल की शुरुआत में आम चुनाव होने हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चुनाव बहिष्कार के संकेत दिए हैं, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने 237 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इस बीच एक बड़ी राजनीतिक रैली में हिंसा के बाद हालात और तनावपूर्ण हो गए हैं।
पिछले वर्ष शेख हसीना की सरकार के पतन और मोहम्मद युनूस की अंतरिम सरकार के गठन के बाद भारत और ढाका के रिश्तों में ठंडापन आ गया। भारत ने हसीना को बिना आधिकारिक शरण दिए “राजनैतिक सुरक्षा” दी थी, जो युनूस सरकार के साथ रिश्तों में दरार का कारण बनी।
भारत अब इन चुनावों पर इसलिए नजर रख रहा है क्योंकि अतीत में खालिदा जिया सरकार (2001-2006) के दौरान भारत-विरोधी रुख और पूर्वोत्तर के अलगाववादी संगठनों को बांग्लादेश की शरण मिलने के आरोप लगे थे।
ऐसे में बीएनपी की बढ़ती सक्रियता भारत के लिए कूटनीतिक चिंता का विषय बन गई है।
🔹 नेपाल: वाम एकता का नया समीकरण
नेपाल में भी राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है।
हाल ही में नौ वाम दलों ने मिलकर एक नया वाम गठबंधन बनाया है, जिसके नेतृत्व में पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ हैं।
इस कदम ने नेपाल की कम्युनिस्ट राजनीति को दो धाराओं में बांट दिया है।
जेन जी के तख्तापलट और सुशीला कार्की की अंतरिम सरकार के दौर में यह नया गठबंधन वहां के सत्ता समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है।
भारत, जिसके नेपाल से गहरे सामाजिक और धार्मिक रिश्ते हैं, इन घटनाओं को बेहद करीब से देख रहा है।
🔹 भारत की कूटनीतिक दृष्टि
भारत के लिए दोनों देश केवल पड़ोसी ही नहीं, बल्कि रणनीतिक और सुरक्षा के दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण साझेदार हैं।
बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता पूर्वोत्तर भारत पर असर डाल सकती है, जबकि नेपाल में वामपंथी एकजुटता चीन के प्रभाव को बढ़ा सकती है।
इसी वजह से दक्षिण एशिया के इन दोनों चुनावों पर भारत की नजरें टिकी हुई हैं।
📰 मराठी संस्करण
बांगलादेश, नेपाळ… दोन शेजारी, दोन निवडणुका — आणि भारत का ठेवतोय नजर?
दक्षिण आशियात पुन्हा वाढली राजकीय हालचाल, शेख हसीना पासून पुष्पकमल दहलपर्यंत सर्वांवर भारताची पैनी नजर
नवी दिल्ली।
भारताचे दोन अतिशय महत्त्वाचे शेजारी देश — बांगलादेश आणि नेपाळ — सध्या निवडणुकांच्या उंबरठ्यावर उभे आहेत. या दोन्ही देशांतील राजकीय हालचालींवर भारत सरकार ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ अंतर्गत काटेकोरपणे लक्ष ठेवत आहे।
🔸 बांगलादेश : सत्तेसाठी शेख हसीना विरुद्ध खालिदा जिया
बांगलादेशमध्ये पुढील वर्षाच्या सुरुवातीला सार्वत्रिक निवडणुका होणार आहेत।
माजी पंतप्रधान शेख हसीना यांनी निवडणुका बहिष्कृत करण्याचे संकेत दिले आहेत, तर त्यांच्या विरोधात खालिदा जिया यांच्या बांगलादेश नॅशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने २३७ जागांवर उमेदवार जाहीर केले आहेत।
अलीकडील राजकीय सभांमधील हिंसाचारामुळे वातावरण तापले आहे।
गेल्या वर्षी शेख हसीना सरकारचा पतन आणि मोहम्मद युनूस यांच्या अंतरिम सरकारचे गठन झाल्यानंतर भारत-बांगलादेश संबंधात थंडावा आला आहे।
भारताने शेख हसीनांना राजकीय आश्रय न देता “सुरक्षा” पुरवली होती, ज्यामुळे युनूस सरकारशी तणाव वाढला।
भारत या निवडणुकांवर बारकाईने लक्ष ठेवत आहे कारण 2001–2006 या काळात खालिदा जिया सरकारचा भारतविरोधी दृष्टिकोन आणि पूर्वोत्तर भारतातील फुटीरतावाद्यांना आश्रय दिल्याचे आरोप झाले होते।
बीएनपीची सक्रियता आता भारतासाठी कूटनीतिक दृष्ट्या चिंतेचा विषय आहे।
🔸 नेपाळ : डाव्या राजकारणाचा नवा मोर्चा
नेपाळमध्ये नुकतेच नऊ डावे पक्ष एकत्र येऊन नवा डावा आघाडी गठीत केली आहे।
पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ यांच्या नेतृत्वाखाली या आघाडीमुळे देशातील कम्युनिस्ट राजकारण दोन गटात विभागले आहे।
जेन जी यांच्या तख्तापलटानंतर आणि सुशीला कार्की यांच्या अंतरिम सरकारच्या काळात, हा नवा आघाडी सत्ता समीकरण बदलू शकतो।
भारत-नेपाळचे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आणि आर्थिक संबंध लक्षात घेता, भारत सरकार या सर्व हालचालींवर नजर ठेवून आहे।
🔸 भारताची रणनीतिक नजर
भारतासाठी बांगलादेश आणि नेपाळ हे फक्त शेजारी देश नाहीत, तर राष्ट्रीय सुरक्षेच्या दृष्टीने अतिशय महत्त्वाचे रणनीतिक भागीदार आहेत।
बांगलादेशातील अस्थिरता पूर्वोत्तर भारतावर परिणाम करू शकते, तर नेपाळातील डावी एकजूट चीनच्या प्रभावाला वाव देऊ शकते।
म्हणूनच भारत या दोन्ही निवडणुकांकडे अत्यंत बारकाईने पाहत आहे।