
प्रयागराज। विश्व के सबसे बड़े धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन माघ मेला 2026 में दंडी बाड़ा का विशेष महत्व माना जाता है। प्रयागराज में त्रिवेणी संगम के तट पर यह आयोजन हजारों श्रद्धालुओं और साधुओं को आकर्षित करता है। इस वर्ष भी भक्तों को दंडी संन्यासियों से मिलने और उनके जीवन दर्शन को जानने का अवसर मिलेगा।
दंडी बाड़ा क्या है?
दंडी बाड़ा उन संन्यासियों और संतों का संगठन है जो हाथ में ‘दंड’ धारण करते हैं। यह दंड संयम, साधना और त्याग का प्रतीक माना जाता है। दंडी संन्यासियों का यह संगठन धार्मिक आयोजनों, विशेषकर कुंभ और माघ मेले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- हाथ में दंड धारण करने वाले संन्यासी को दंडी संन्यासी कहा जाता है।
- यह कोई संप्रदाय नहीं बल्कि आश्रम परंपरा है।
- प्रथम दंडी संन्यासी के रूप में भगवान नारायण को माना जाता है।
- शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए दशनाम संन्यास और अखाड़ों की स्थापना की।
दंडी संन्यासियों की दुनिया
- दंडी संन्यासी केवल ब्राह्मचारी ब्राह्मण हो सकता है।
- गृहस्थ आश्रम में पदार्पण नहीं हुआ होना चाहिए।
- ये संन्यासी कठोर दिनचर्या, तप और साधना में लगे रहते हैं।
- स्वयं भोजन नहीं बनाते और बिना निमंत्रण किसी के घर भोजन नहीं करते।
- जहाँ भोजन करते हैं, वहाँ मान्यता है कि मां लक्ष्मी का आशीर्वाद होता है।
दंडी संन्यासियों के लिए जीवन का हर दिन तप और संयम में बीतता है। उनकी साधना और आचार-व्यवहार ऐसी होती है कि केवल उनके दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं को नारायण के दर्शन और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। माघ मेले में दंडी स्वामी की सेवा, दर्शन और मार्गदर्शन न करने वाले स्नान और जप-तप अधूरा माना जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
माघ मेला केवल स्नान और पूजा का आयोजन नहीं है, बल्कि यह साधु-संतों और श्रद्धालुओं के बीच आध्यात्मिक मिलन का पर्व है। दंडी बाड़ा इस मेले का एक ऐसा पहलू है, जो संयम, त्याग और साधना की मिसाल प्रस्तुत करता है।