
त्रिची (तमिलनाडु)। आर. नरसिम्मन की कहानी पारंपरिक कृषि धारणाओं को चुनौती देती है। 1998 में उन्होंने अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर खेती की ओर कदम बढ़ाया। आज उनके 158 एकड़ के ऑर्गेनिक एग्रोफॉरेस्ट्री इकोसिस्टम से सालाना 40-50 लाख रुपये की कमाई होती है।
थ्री-टियर मॉडल से मिली सफलता
नरसिम्मन ने मोनोकल्चर की अस्थिरताओं से सबक लेकर थ्री-टियर मॉडल अपनाया। इसमें लंबी अवधि के पेड़ (सागौन, लाल चंदन, सिल्वर ओक) करोड़ों का राजस्व देते हैं, वार्षिक फसलें (आम, केला, तरबूज) नियमित आय देती हैं और मौसमी दालें (उड़द, मूंग) तुरंत नकदी का स्रोत हैं। अकेले सिल्वर ओक और अन्य पेड़ सालाना 10-15 लाख रुपये अतिरिक्त आय देते हैं।
ऑर्गेनिक खेती और टिकाऊ तकनीक
2008 से नरसिम्मन पूरी तरह जैविक खेती पर गए। 16 देसी गायों के गोबर से खाद तैयार की, सौर ऊर्जा से ड्रिप सिंचाई की और 700 वर्ग फीट का सौर ड्रायर लगाया। 2010 में उन्होंने 35.75 किलो का रिकॉर्ड-तोड़ तरबूज उगाया, जो स्थानीय बाजार में 5,000 रुपये में बिका। इस सफलता ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने की नीति योजना में सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया।
पुरस्कार और सम्मान
उनके मॉडल की खासियत इसकी आत्मनिर्भरता है। वर्षा जल संचयन, सौर ऊर्जा और पेड़ों की परतों के माध्यम से यह सिस्टम 20 साल तक बिना मानवीय हस्तक्षेप के संचालित हो सकता है। नरसिम्मन को नीति आयोग और इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर सहित 60 से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं। उनके खेत को बीएससी से पीएचडी तक के छात्रों के लिए जीवित प्रयोगशाला बनाया गया है, जहां वह युवाओं को मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं।
भविष्य की योजनाएं
नरसिम्मन भारतीय वन आनुवंशिक संस्थान के साथ मिलकर चंदन और देसी लकड़ी के पेड़ों को व्यावसायिक रूप से बाजार में लाने की योजना बना रहे हैं। उनका उद्देश्य लकड़ी के आयात पर भारत की निर्भरता कम करना है। साथ ही, वह एग्री-टूरिज्म शुरू करने की योजना भी बना रहे हैं, ताकि शहरी निवासी उनके सफल एग्रोफॉरेस्ट्री मॉडल को देख सकें।
नरसिम्मन का मानना है:
“खेती एक 100 साल का निवेश है। मिट्टी बैंक खाता है, पेड़ पेंशन। अगर सभी किसान सालाना केवल 10 पेड़ लगाएं, तो भारत एक दशक में लकड़ी का आयात बंद कर सकता है।”