
पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 10वीं बार शपथ ग्रहण के बाद अपने शासन और सियासी दांव-पेंच का ऐसा प्रदर्शन किया है कि विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों हैरान हैं। जानकारों के अनुसार, उन्होंने 2025 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कई ऐसे फैसले लिए, जिससे उन्होंने एक ही बार में दो निशाने साधे।
तीन नए विभागों का गठन
नीतीश कुमार ने अचानक तीन नए विभागों का गठन कर बीजेपी को चौंका दिया। इस रणनीति में सिविल विमानन विभाग और महत्वपूर्ण विभागों को अपने पास रखते हुए शिक्षा मंत्री सुनील कुमार को उच्च शिक्षा विभाग सौंपा। वहीं, केवल एक ही विभाग—रोजगार और कौशल विकास—बीजेपी के पास रखा गया। इस फैसले से यह साफ हो गया कि सत्ता का असली नियंत्रण बिहार में नीतीश के पास है।
जनता से जुड़े विभाग बीजेपी को सौंपे
मुख्यमंत्री ने जनता से सीधे जुड़े विभाग जैसे राजस्व, भूमि और गृह विभाग बीजेपी को सौंपे। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि किसी भी असफलता या जनता की शिकायत सीधे भगवा पार्टी पर जाए और नीतीश सरकार की साख पर असर न पड़े। हाल के समय में राजस्व एवं भूमि विभाग में लगातार शिकायतों ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
गृह विभाग भी बना नीतीश के नियंत्रण का हथियार
भले ही बीजेपी ने गृह विभाग अपने पास पाने का दावा किया, लेकिन प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार गृह विभाग भी नीतीश के नियंत्रण में है। अपराध बढ़े तो दोष बीजेपी पर आएगा, और सफलता मिली तो नीतीश सरकार को श्रेय जाएगा। सामान्य प्रशासन विभाग को अपने पास रखकर मुख्यमंत्री ने सभी आईएएस पोस्टिंग, प्रोन्नति और ट्रांसफर-पोस्टिंग की चाबी अपने पास रखी।
सचिव के माध्यम से विभागों पर नियंत्रण
नीतीश कुमार का शासन-शैली का यह अंदाज है कि जिन विभागों का जिम्मा बीजेपी के पास भी है, उन पर सचिव के जरिए अप्रत्यक्ष नियंत्रण बनाए रखा जाता है। बीजेपी के मंत्री भी मानते हैं कि सचिवों के माध्यम से नीतीश विभागों को नियंत्रित करते हैं।
नीतीश कुमार की यह सियासी रणनीति स्पष्ट करती है कि बिहार में असली सिकंदर वही हैं, और उनका चालाक दांव विपक्ष और सहयोगी दोनों को चुप करा देता है।