
वृंदावन (मथुरा)।
भक्ति, वैराग्य और रस की भूमि वृंदावन में इन दिनों आध्यात्मिक चेतना अपने चरम पर है। देश-विदेश से श्रद्धालु और संत प्रेमानंद महाराज के सान्निध्य में आकर आध्यात्मिक शांति और मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं। इसी क्रम में पुणे से आए स्वामीनारायण संप्रदाय के वरिष्ठ संतों ने प्रेमानंद महाराज से भेंट की और उनके साथ आध्यात्मिक संवाद किया।
पुणे से आए ये संत बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था से जुड़े हुए हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय अपनी अनुशासित जीवनशैली, विशाल मंदिर निर्माण, सेवा कार्यों और सामाजिक सुधारों के लिए विश्वभर में जाना जाता है। पुणे में इस संप्रदाय का व्यापक प्रभाव है, जहां संत युवा पीढ़ी में संस्कार, सेवा और सनातन मूल्यों के प्रसार का कार्य कर रहे हैं।
हारमोनियम भेंट, वातावरण हुआ भक्तिमय
जब स्वामीनारायण संप्रदाय के संत प्रेमानंद महाराज के समक्ष पहुंचे, तो पूरा वातावरण भक्तिरस से सराबोर हो गया। संतों ने श्रीजी के लिए एक हारमोनियम भेंट किया। प्रेमानंद महाराज ने हारमोनियम पर ‘सा-रे-गा-मा-पा-धा-नी-सा’ की स्वर लहरियां छेड़ीं, जिसके बाद स्वामीनारायण संप्रदाय के संतों ने भावपूर्ण कीर्तन प्रस्तुत किया। इस दौरान प्रेमानंद महाराज भी भावविभोर नजर आए और समूचा वातावरण भक्ति में डूब गया।
नाम जप ही साधना का सार: प्रेमानंद महाराज
कीर्तन के पश्चात प्रेमानंद महाराज ने संतों और उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि गुरु द्वारा दिए गए नाम का निरंतर चिंतन और कीर्तन ही साधना की सच्ची सफलता है।
उन्होंने कहा,
“अखंड नाम स्मरण चलता रहे तो भगवान नारायण सदा साथ रहते हैं। साधु वही है, वैष्णव वही है, जो एक क्षण के लिए भी प्रभु का स्मरण न छोड़े। शुभ-अशुभ से परे केवल भगवद् चिंतन ही जीवन का सार है।”
इस दौरान पुणे से आए संतों ने कहा, “न लोहे की जंजीर, न सोने की जंजीर—महाराज आप यही सिखाते हैं।”
इस पर प्रेमानंद महाराज ने उत्तर दिया,
“नाम जप ही सर्वोपरि है।”