
अमेरिका और चीन के बीच ताइवान को लेकर तनाव बढ़ गया है। अमेरिका ने ताइवान को 10 अरबडॉलरसेअधिककेहथियारोंकीबड़ीखेप बेचने का ऐलान किया है, जिसमें मिसाइलें, तोपें, ड्रोनऔरउच्चतकनीकीसैन्यउपकरण शामिल हैं। अमेरिका का कहना है कि यह कदम ताइवान की रक्षा क्षमता को मजबूत करने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी है।
चीन ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए इस फैसले की कड़ी निंदा की। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह हथियार बिक्री चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा है और इससे अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ सकता है।
हथियारों का विवरण
इस डील में 82 हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (HIMARS), 420 सैन्य सामरिक मिसाइलें, 60 ऑटोमेटिक हॉवित्जर तोपें, ड्रोन और अन्य उच्च तकनीकी सैन्य उपकरण शामिल हैं। इसके अलावा, सैन्य सॉफ्टवेयर, जैवेलिन और टीओडब्ल्यू मिसाइलें, हेलीकॉप्टर के पुर्जे और हार्पून मिसाइलों की मरम्मत किट भी इसमें शामिल हैं।
भारत को लाभ, चीन को झटका
विशेषज्ञों का कहना है कि ताइवान की सैन्य ताकत बढ़ने से चीन के सामने दो मोर्चों की चुनौती खड़ी होगी। इससे भारत के लिए भी रणनीतिक फायदा है, क्योंकि चीन अब सीधे भारतीय सीमाओं पर आक्रामकता दिखाने में हिचकिचाएगा।
ताइवान की प्रतिक्रिया
ताइवान ने इस हथियार सौदे के लिए अमेरिका का आभार व्यक्त किया। ताइवान रक्षा मंत्रालय ने कहा कि इससे उनकी रक्षा क्षमताएं और प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी और क्षेत्रीय शांति बनाए रखने में मदद मिलेगी।
चीन का डर और अमेरिकी रणनीति
चीन का डर है कि ताइवान की सशस्त्र क्षमता बढ़ने से अमेरिका की मध्यस्थता और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव होगा। वहीं अमेरिका का उद्देश्य स्पष्ट है—ताइवान को सुरक्षा प्रदान कर चीन की आक्रामकता को रोकना और भारत सहित इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन बनाए रखना।