Friday, December 19

भूमिहार ब्राह्मण: इतिहास, उत्पत्ति और विवाद—स्वामी सहजानंद सरस्वती के दस्तावेजी प्रमाण पढ़ें


बिहार में भूमिहारब्राह्मण को जाति जनगणना में भूमिहार लिखे जाने के बाद विवाद गहराया है। सवर्ण आयोग और सरकारी फाइलों में यह मामला अब भी कायम है। भूमिहार ब्राह्मणों का इतिहास अत्यंत समृद्ध और दस्तावेजीकृत है, जो स्वामी सहजानंदसरस्वती के लेखन और अंग्रेजों के गजेटियर में दर्ज साक्ष्यों से स्पष्ट होता है।

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भूमिहार ब्राह्मण का ऐतिहासिक प्रमाण:
स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपने ग्रंथ ब्रह्मर्षि वंश विस्तार में भूमिहार ब्राह्मणों का समग्र इतिहास लिखा। इसमें उन्होंने अंग्रेज लेखकों और गजेटियर के उदाहरण दिए। 1865 और 1911 की जनगणना भी इसमें शामिल हैं। अंग्रेज लेखक विलियम क्रूक (1896) के अनुसार, “भुइंहार शब्द संस्कृत के भूमिहार का अपभ्रंश है। भूमि का अर्थ पृथ्वी और हार का अर्थ अधिकार करने वाला।” यह जाति संयुक्त प्रांत के पूर्वी जिलों में जमींदार और खेती करने वाली ब्राह्मण जाति के रूप में पाई जाती थी।

भूमिहार और जमींदारी का संबंध:
जमींदार का संस्कृत शब्द भूमिहार है। याचक और अयाचक ब्राह्मणों में अंतर स्पष्ट है। भूमि को महत्व देने वाले अयाचक ब्राह्मणों ने विधिसम्मत शस्त्र-अस्त्र से अपनी संपत्ति सुरक्षित रखी। ये कालांतर में भूमिहार ब्राह्मण कहलाए।

समाज संगठन और शिक्षा:
1913 में बलिया में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासभा का सम्मेलन हुआ। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने समाज की स्थिति पर शोधपरक भाषण दिया। उन्होंने भूमिहार ब्राह्मणों को पुरोहिती और संस्कृत शिक्षा अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनका ग्रंथ कर्मकलाप 1200 पृष्ठों का है, जिसमें जीवन के सभी संस्कारों का विवरण है।

भूमिहार ब्राह्मणों की पुरोहिती:
1915-1920 के दौरान, हजारीबाग के इटखोरी और चतरा में भूमिहार ब्राह्मण राजपूत, कायस्थ और ब्राह्मणों के घर पूजापाठ कराते थे। इस तरह उन्होंने कृषि और पुरोहिती दोनों में महारत हासिल की।

स्वामी सहजानंद सरस्वती का जीवन और योगदान:

  • जन्म: 1889, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
  • शिक्षा: संस्कृत और न्याय मीमांसा में पारंगत
  • कार्य: किसान आंदोलन, सामाजिक सुधार, संस्कृत शिक्षा का प्रचार
  • निधन: 1950, मुजफ्फरपुर, बिहार

उनकी अंतिम यात्रा में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह और मंत्रिमंडल के कई सदस्य शामिल हुए।

निष्कर्ष:
भूमिहार ब्राह्मणों का इतिहास समृद्ध, गहन और प्रमाणित है। उत्पत्ति, सामाजिक भूमिका और पुरोहिती में योगदान ने इसे विशिष्ट पहचान दी है। इस विवाद को समझने और समाधान खोजने के लिए इतिहास के इन पन्नों को पढ़ना अनिवार्य है।

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