
नई दिल्ली/स्पेस टेक: एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की स्टारलिंक सेवा भारत में जल्द ही लॉन्च होने वाली है। दूर-दराज के इलाकों में तेज़ और भरोसेमंद इंटरनेट देने का वादा करने वाली यह सेवा, तकनीकी दृष्टि से देश के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। लेकिन अंतरिक्ष विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि इस एंट्री के पहले ही स्टारलिंक सहित सभी सैटेलाइट्स के लिए टकराव और नुकसान का खतरा बढ़ गया है।
अंतरिक्ष बना ताश के पत्तों का महल
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अब अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि एक छोटी-सी चूक भी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। बड़े तूफान आने पर सैटेलाइट आपस में टकरा सकते हैं, जिससे केसलर सिंड्रोम जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसमें अंतरिक्ष में कचरे का स्तर इतना बढ़ जाता है कि नई सैटेलाइट भेजना मुश्किल हो जाता है।
स्टारलिंक ने हजारों सैटेलाइट भेजी हैं
लाइवमिंट की रिपोर्ट के अनुसार, अकेले स्टारलिंक ने हजारों सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में भेजी हैं। अमेरिकी एफसीसी की रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ वर्षों में ये सैटेलाइट कई बार अपनी जगह बदल चुकी हैं, टकराव से बचने के लिए। साउथैंप्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ह्यू लुईस का कहना है कि जैसे-जैसे सैटेलाइट्स की संख्या बढ़ेगी, टकराव का खतरा भी बढ़ेगा, और गलती की गुंजाइश कम हो जाएगी।
मई 2024 का तूफान सबक
मई 2024 में आए गैनन तूफान के दौरान पृथ्वी की लोअर ऑर्बिट में आधी से ज्यादा सैटेलाइट्स को अपनी जगह बदलनी पड़ी थी। तूफान न केवल कम्यूनिकेशन और नेविगेशन सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि अचानक आने पर टकराव का जोखिम और भी बढ़ जाता है।
जिम्मेदारी और सुरक्षा नियम जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि स्टारलिंक और अन्य कंपनियों को सैटेलाइट संचालन में अधिक जिम्मेदारी बरतनी होगी। पुरानी सैटेलाइट को जल्दी हटाना, टकराव रोकने के बेहतर तरीके अपनाना और अंतरिक्ष कचरे को कम करना बेहद जरूरी है। सरकारों और कंपनियों को मिलकर नियम बनाने होंगे, ताकि अंतरिक्ष सभी के लिए सुरक्षित रहे और नई तकनीक का लाभ हर जगह पहुंच सके।