Thursday, December 18

भारत में मानसिक स्वास्थ्य का हाल जानने के लिए 9 साल बाद नेशनल सर्वे, सरकार जुटी आंकड़े जुटाने में

नई दिल्ली।
देश में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का बड़ा आकलन करने के लिए केंद्र सरकार पूरे 9 साल बाद नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे-2 (NMHS-2) शुरू कर रही है। इससे पता चलेगा कि लोगों में मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां कितनी गंभीर हैं और किन समूहों को अधिक मदद की जरूरत है।

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सर्वे का मकसद और कवरेज
इस सर्वे को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS), बेंगलुरु कर रहा है। NMHS-2 में 13 से 17 साल के किशोरों और 18 साल से अधिक उम्र के सभी वयस्कों को शामिल किया जाएगा। सर्वे में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कवरेज दिया गया है, जबकि पिछला सर्वे 2015-16 में सिर्फ 12 राज्यों तक सीमित था।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, NMHS-2 में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी प्राथमिक समस्याओं का राज्यवार और राष्ट्रीय स्तर पर अनुमान तैयार किया जाएगा। इसमें मानसिक बीमारियों के कारण होने वाली विकलांगता, सामाजिक और आर्थिक बोझ का आकलन भी होगा। साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और संसाधनों का व्यापक मैपिंग भी की जाएगी।

क्लिनिकल इलाज की जरूरत और आंकड़े
पिछले NMHS (2015-16) में यह पाया गया था कि भारत में 10.6% वयस्क मानसिक बीमारियों से पीड़ित थे, जबकि जीवनभर में यह आंकड़ा 13.7% था। शहरी इलाकों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बोझ 13.5% था, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 6.9% था। विशेषज्ञ बताते हैं कि लगभग 15% वयस्क आबादी को मानसिक स्वास्थ्य के लिए क्लिनिकल इलाज की जरूरत है।

जोखिम वाले समूहों पर विशेष ध्यान
NMHS-2 में बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग, प्रवासी और आदिवासी आबादी सहित कमजोर समूहों का अध्ययन किया जाएगा। साथ ही, जलवायु परिवर्तन, आपदाओं और विस्थापन के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की भी जांच की जाएगी।

स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि इस सर्वे के नतीजे राष्ट्रीय मेंटल हेल्थ प्रोग्राम को मजबूती देने, संसाधनों के उचित बंटवारे और भविष्य की पॉलिसी बनाने में मदद करेंगे, खासकर कम सुविधा वाले और ज्यादा जोखिम वाले इलाकों में।


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