
पटना।
बिहार में सूचना का अधिकार (RTI) कानून की जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। जिस कानून का मकसद पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, वही आज आम नागरिकों के लिए सिरदर्द बनता नजर आ रहा है। हालात ऐसे हैं कि 30 दिनों में दी जाने वाली सूचना 1809 दिनों बाद भी नहीं दी गई। इस स्थिति ने बिहार सरकार की कार्यप्रणाली और प्रशासनिक जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस मुद्दे को सीतामढ़ी से निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ चुकीं और पूर्व मुखिया रीतु जायसवाल ने सार्वजनिक रूप से उठाया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर RTI पोर्टल का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के नियंत्रण वाले सामान्य प्रशासन विभाग से आवेदन संबंधित विभागों को तो भेज दिए जाते हैं, लेकिन उसके बाद उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। खासतौर पर राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग का हाल बेहद चिंताजनक बताया गया है।
RTI पोर्टल के आंकड़े खुद व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। एक आवेदक ने 3 जनवरी 2021 को आवेदन संख्या BR202100060017 के जरिए सूचना मांगी थी, लेकिन 1809 दिन बीत जाने के बावजूद आज तक जानकारी नहीं दी गई। इसी तरह
- 21 दिसंबर 2024 को किए गए आवेदन को 361 दिन,
- 17 जनवरी 2025 के आवेदन को 334 दिन,
- और 6 सितंबर 2025 के आवेदन को 102 दिन बीत चुके हैं,
लेकिन सभी आवेदन आज भी ‘पेंडिंग’ की स्थिति में हैं। खास बात यह है कि सभी आवेदकों ने निर्धारित शुल्क का भुगतान समय पर किया है, जिसकी पुष्टि पोर्टल पर ‘पेमेंट सक्सेस’ के रूप में दर्ज है।
रीतु जायसवाल ने सवाल उठाया है कि जब सरकार सूचना देने के लिए तैयार नहीं है, तो RTI पोर्टल चलाने और आम जनता से फीस लेने का औचित्य क्या है। उन्होंने इसे सूचना के अधिकार कानून की भावना के साथ खुला मजाक बताया।
इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर भी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कई यूजर्स ने कहा कि बिहार के अधिकारियों को RTI कानून की बुनियादी समझ तक नहीं है। एक यूजर ने लिखा कि आवेदन को 7 दिनों में ट्रांसफर करने का नियम है, लेकिन यहां महीनों लग जाते हैं और फिर आवेदन सालों तक लटका रहता है। कुछ लोगों ने अपने-अपने पेंडिंग RTI आवेदनों के उदाहरण भी साझा किए और इसे “प्रशासनिक अराजकता” करार दिया।
गौरतलब है कि सूचना के अधिकार कानून के तहत किसी भी सरकारी विभाग को 30 दिनों के भीतर सूचना देना अनिवार्य है। इसके बावजूद बिहार में RTI व्यवस्था की यह बदहाली सरकार के सुशासन के दावों पर सवालिया निशान लगाती है। अब देखना यह है कि सरकार और सूचना आयोग इस गंभीर स्थिति पर क्या ठोस कदम उठाते हैं, या RTI कानून यूं ही कागजों तक सिमटकर रह जाएगा।