
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, पैरों की मसल्स कमजोर और पतली होने लगती हैं। इसे सार्कोपेनिया कहते हैं। यह उम्र बढ़ने के साथ सामान्य रूप से होता है, लेकिन अगर शरीर सक्रिय नहीं है, तो यह तेजी से बढ़ सकता है और दिमागी स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकता है।
पैरों की कमजोरी से ब्रेन पर खतरा
अध्ययनों से पता चला है कि कमजोर पैरों की वजह से कॉग्निटिव फंक्शन यानी सोचने और याद रखने की क्षमता में कमी जल्दी आ सकती है। इसके साथ डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है। कारण यह है कि पैरों की मसल्स सक्रिय होने पर एक खास केमिकल रिलीज होता है, जिसे ब्रेन डिराइव्ड न्यूरोट्रोफिक फैक्टर (BDNF) कहते हैं। यह केमिकल मस्तिष्क के मेमोरी एरिया यानी हिपोकैम्पस में कनेक्शन बढ़ाता है।
चोट का खतरा भी कम होता है
मजबूत पैरों से शरीर का बैलेंस सही रहता है, जिससे गिरने या चोट लगने का खतरा कम होता है। खासकर बुजुर्गों में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि 60 साल से ऊपर चोट लगने पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
बचाव के उपाय
- रोज़ाना चलें: सिर्फ 30 मिनट की सैर भी मसल्स और दिमाग के लिए फायदेमंद है।
- स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करें: स्क्वैट्स, लंजेस और लेग प्रेस जैसी एक्सरसाइज से पैरों की ताकत बढ़ाएं।
- प्रोटीन युक्त आहार: मसल्स मास बनाए रखने के लिए प्रोटीन जरूरी है।
- सीढ़ियों का इस्तेमाल: यह शरीर के बैलेंसिंग ऑर्गन को मजबूत करता है।
40 की उम्र से शुरू करें
डॉक्टर बताते हैं कि अच्छी आदतें किसी भी उम्र में शुरू की जा सकती हैं। अगर आप 40 की उम्र से पैरों की ताकत और एक्टिविटी पर ध्यान देना शुरू कर दें, तो डिमेंशिया का खतरा कम किया जा सकता है। 60 की उम्र में भी नई आदतें अपनाकर मस्तिष्क और शरीर दोनों को सक्रिय रखा जा सकता है।
टिप: पैरों की ताकत और एक्टिविटी को नजरअंदाज न करें। सार्कोपेनिया का असर शुरू होने से पहले ही इन आसान आदतों को अपनाएं और दिमाग को तेज बनाए रखें।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी सोशल मीडिया रील पर आधारित है। किसी भी उपाय को अपनाने से पहले किसी योग्य एक्सपर्ट की सलाह लेना आवश्यक है।