
चित्तौड़गढ़: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध सांवलियाजी मंदिर के चढ़ावे को लेकर सिविल कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है। मंदिर भंडार से होने वाली करोड़ों की आय पर लंबे समय से विवाद था। अदालत ने साफ कर दिया है कि अब मंदिर का पैसा राजनीतिक या बाहरी योजनाओं में खर्च नहीं होगा और वह केवल भक्तों की भलाई के लिए इस्तेमाल होगा।
विवाद की शुरुआत
मामला 2018 से शुरू हुआ, जब मंदिर मंडल ने राज्य सरकार की बजट घोषणा के तहत मातृकुंडिया तीर्थस्थल विकास के लिए 18 करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव पारित किया। इसके विरोध में स्थानीय भक्तों – मदन जैन, कैलाश डाड, श्रवण तिवारी समेत अन्य ने जनहित याचिका दायर की। उनका आरोप था कि मंदिर निधि भक्तों की मूलभूत सुविधाओं पर खर्च होने के बजाय राजनीतिक और बाहरी योजनाओं में जा रही थी।
कोर्ट का दो-टूक आदेश
चित्तौड़गढ़ की मंडफिया सिविल कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मंदिर निधि का उपयोग केवल भक्तों की जरूरतों के लिए होगा। मंदिर मंडल को 1992 अधिनियम की धारा 28 का पालन करना अनिवार्य होगा। 18 करोड़ रुपये जारी करने पर अस्थायी रोक लगाई गई है और दुरुपयोग होने पर अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे।
भक्तों की लंबित मांगें
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में बताया कि मंदिर परिसर में भोजनशाला, पार्किंग, बेहतर शौचालय, स्वास्थ्य सुविधाएं और अस्पताल आज तक अधूरी हैं। बावजूद इसके, मंदिर मंडल बाहरी स्थलों और राजनीतिक घोषणाओं पर करोड़ों खर्च करना चाहता था। कोर्ट ने ऐसे सभी प्रस्तावों पर सख्त रोक लगाई।
बाहरी संस्थाओं को फंड देने पर भी रोक
सालों से मंदिर भंडार से गोशालाओं और बाहरी धार्मिक संस्थाओं को फंड देने का दबाव रहा। कई बार मौजूदा राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इस दिशा में सक्रिय रहे। अदालत ने स्पष्ट किया कि अब मंदिर निधि केवल स्थानीय भक्तों और मंदिर के विकास के लिए खर्च होगी।
भक्तों में संतोष
कोर्ट के आदेश के बाद स्थानीय भक्तों में संतोष की लहर है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि अब स्वच्छता, भोजनशाला, निशुल्क पार्किंग, चिकित्सा सुविधाएं और स्थानीय विकास पर प्राथमिकता दी जाएगी।
पूरे राजस्थान के मंदिरों के लिए मिसाल
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला न केवल सांवलियाजी मंदिर, बल्कि राजस्थान के सभी धार्मिक स्थलों के लिए नजीर बन सकता है। अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया है—“मंदिर की धनराशि भक्तों की होती है, न कि सत्ता या बाहरी संस्थाओं की।” भक्तों के मुताबिक, यह निर्णय मंदिर की पवित्रता और पारदर्शिता को सुरक्षित रखने की दिशा में सबसे बड़ा कदम है।